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जादूगोड़ा स्थित रंकिनी मंदिर: पौराणिक आस्था और वर्तमान सामाजिक यथार्थ

JADUGORA : के पूर्वी सिंहभूम जिले के जादूगोड़ा क्षेत्र में स्थित रंकिनी मंदिर जनजातीय आस्था और पौराणिक परंपराओं का एक अद्भुत संगम है। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार रंकिनी देवी को ग्राम-रक्षक और क्षेत्र की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है। जनश्रुति है कि प्राचीन समय में इस क्षेत्र के घने जंगलों और पहाड़ियों में असुर और दुष्ट आत्माओं का भय व्याप्त था। तब ग्रामवासियों ने एक शक्तिशाली देवी की आराधना की, जिससे “रंकिनी” का अवतरण हुआ। देवी ने क्षेत्र को भयमुक्त किया और ग्रामीणों को सुरक्षित जीवन का वरदान दिया। कुछ लोक परंपराओं में रंकिनी देवी को काली और दुर्गा का ही एक उग्र स्वरूप माना जाता है। कहा जाता है कि देवी को लाल रंग अत्यंत प्रिय है, इसलिए पहले समय में उन्हें लाल वस्त्र और सिंदूर अर्पित करने की परंपरा रही है। पुराने समय में विशेष बलि-प्रथा भी प्रचलित थी, जो अब सामाजिक जागरूकता के कारण प्रतीकात्मक रूप में बदल गई है। रंकिनी देवी की पूजा मूलतः प्रकृति आधारित है, जिसमें जंगल, पहाड़ और जलस्रोतों को पवित्र माना जाता है।  मंदिर की स्थापना और जनजातीय आस्था रंकिनी मंदिर की स्थापना को लेकर कोई लिखित ऐतिहासिक प्रमाण नहीं हैं, लेकिन लोक कथाओं के अनुसार कई शताब्दियों से यहाँ देवी की पूजा होती आ रही है। प्रारंभ में यह स्थान केवल एक प्राकृतिक चट्टान और साल वृक्ष के नीचे स्थापित प्रतीकात्मक स्थल था, जहाँ गांव के मांझी, पुजारी और पाहन द्वारा सामूहिक पूजा कराई जाती थी। धीरे-धीरे लोगों के सहयोग से यहाँ एक स्थायी मंदिर का निर्माण हुआ। जनजातीय समुदाय- विशेषकर संथाल, हो और मुंडा समाज – इस मंदिर को अपनी सांस्कृतिक पहचान का प्रमुख केंद्र मानते हैं। उनके जीवन में रंकिनी देवी केवल धार्मिक शक्ति नहीं, बल्कि जंगल, जल और जमीन की रक्षक के रूप में भी पूजित हैं। खेतों की फसल अच्छी हो, गांव में बीमारी न फैले और वन्य जीवों से बचाव हो – इन सभी कामनाओं के लिए देवी से प्रार्थना की जाती है। यहाँ की पूजा-पद्धति वैदिक और जनजातीय परंपराओं का मिश्रण है। ढोल, मांदर, धुप, चढ़ावा और सामूहिक गीतों के साथ देवी की आराधना की जाती है। आज भी साल में एक बार विशेष जनजातीय अनुष्ठान आयोजित किए जाते हैं, जिनमें सैकड़ों श्रद्धालु भाग लेते हैं। आधुनिक काल में रंकिनी मंदिर की वर्तमान स्थिति वर्तमान समय में जादूगोड़ा का रंकिनी मंदिर न केवल धार्मिक स्थल है, बल्कि यह क्षेत्र की सामाजिक और पर्यावरणीय चर्चा का भी केंद्र बन चुका है। जादूगोड़ा क्षेत्र यूरेनियम खनन के लिए प्रसिद्ध रहा है, जिसका असर आसपास के गांवों और लोगों के जीवन पर पड़ा है। ऐसे में रंकिनी मंदिर स्थानीय लोगों के लिए एक आस्था का सहारा बन गया है, जहाँ वे मानसिक शांति और सुरक्षा की भावना प्राप्त करते हैं। आज मंदिर तक पक्की सड़क की सुविधा उपलब्ध है और आसपास छोटे-बड़े बाजार तथा चाय-पान की दुकानें भी खुल गई हैं। सावन, नवरात्र और विशेष पूजा के समय यहाँ काफी भीड़ उमड़ती है। प्रशासन की ओर से भी त्योहारों के समय सुरक्षा और स्वच्छता पर ध्यान दिया जाता है। पहले की तुलना में अब यहाँ बलि प्रथा बहुत हद तक कम हो चुकी है और उसकी जगह नारियल, लाल चुनरी और प्रतीकात्मक भोग चढ़ाने की परंपरा बढ़ रही है। हालाँकि, मंदिर के आसपास के क्षेत्र में पर्यावरणीय प्रदूषण और स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को लेकर स्थानीय लोगों में चिंता भी रहती है। इस कारण कई सामाजिक संगठन समय-समय पर जागरूकता अभियान चलाते हैं। मंदिर इस पूरे क्षेत्र में सांत्वना और आशा का एक प्रतीक बना हुआ है। आस्था और यथार्थ के बीच रंकिनी मंदिर का महत्व आज के समय में रंकिनी मंदिर केवल एक पौराणिक स्थल नहीं, बल्कि वह स्थान है जहाँ परंपरा और आधुनिक चुनौतियाँ आमने-सामने खड़ी दिखाई देती हैं। एक ओर यह मंदिर सदियों पुरानी जनजातीय संस्कृति और प्रकृति-पूजा का प्रतीक है, वहीं दूसरी ओर यह क्षेत्र औद्योगिक गतिविधियों और पर्यावरणीय बदलावों से जूझ रहा है। फिर भी, स्थानीय लोगों की आस्था आज भी उतनी ही प्रबल है। विवाह से पहले, नई फसल के समय, या किसी बड़ी समस्या के समय गांव के लोग पहले देवी के चरणों में शीश नवाते हैं। पीढ़ी दर पीढ़ी यह विश्वास चला आ रहा है कि रंकिनी देवी अपने भक्तों की रक्षा करती हैं। रंकिनी मंदिर आज भी जादूगोड़ा की पहचान बना हुआ है – एक ऐसा स्थल जो आदिवासी जीवन-दर्शन, प्रकृति-प्रेम और सामाजिक एकता का जीवंत उदाहरण प्रस्तुत करता है। भविष्य में यदि इस स्थान का संतुलित विकास किया जाए, तो यह झारखंड के प्रमुख सांस्कृतिक-धार्मिक स्थलों में और भी महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त कर सकता है।

Khoboriya दिसम्बर 11, 2025 0
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ठंड बढ़ने से झारखंड में मौसम हुआ सर्द

झारखंड के कई जिलों में पिछुआ हवाओं के कारण ठंड में तेज बढ़ोतरी हुई है, जिससे तापमान में गिरावट दर्ज की गई है। मौसम विज्ञान केंद्र रांची के अनुसार, पिछुआ हवाएं उत्तर से उत्तर-पश्चिम दिशा से चल रही हैं, जिनके कारण न्यूनतम तापमान में लगभग चार डिग्री सेल्सियस तक की गिरावट आई है। राजधानी रांची सहित आसपास के क्षेत्रों में सुबह का तापमान करीब 10 डिग्री सेल्सियस के आसपास है, जिससे सुबह के समय काफी ठंडक बढ़ गई है। इस वर्ष सर्दी ने अपनी दस्तक समय से पहले दे दी है, क्योंकि मौसम विभाग ने पहले ही नवंबर के अंत से ठंड बढ़ने की चेतावनी दी थी। रातों में तापमान करीब 9 डिग्री तक गिर जाता है, जिससे पूरे क्षेत्र में ठंड का असर महसूस किया जा रहा है।   राज्य के अधिकांश जिलों में मंगलवार को मौसम साफ और शुष्क रहा और मध्यम तेजी से हवा चली, जिससे ठंडी हवा का अनुभव हुआ। पिछले 24 घंटों में गोड्डा जिले में अधिकतम तापमान 28.2 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया, जबकि गुमला में न्यूनतम तापमान 8.8 डिग्री सेल्सियस रिकॉर्ड हुआ। रांची में अधिकतम तापमान 24.6 और न्यूनतम 11.1 डिग्री सेल्सियस रहा। कृषि विज्ञान केंद्र ने किसानों को सलाह दी है कि इस ठंड में फसलों की सुरक्षा के लिए सिंचाई का विशेष ख्याल रखा जाए ताकि वे प्रभावित न हों।   मौसम विभाग ने सूचना दी है कि बंगाल की खाड़ी में दबाव का क्षेत्र बन रहा है, जिससे चक्रवात बनने की संभावना है। यह चक्रवात झारखंड सहित आसपास के क्षेत्रों के मौसम पर असर डाल सकता है। इस कारण अगले दो दिनों में तापमान में और गिरावट आने की संभावना है और बारिश या तेज हवाओं के चलते खेल आयोजन प्रभावित हो सकता है।राजधानी रांची सहित अन्य जिलों में पछुआ हवाओं के कारण कनकनी बढ़ गई है, जिससे सुबह और शाम की ठंड अधिक महसूस होती है।

“जंगल का तोहफा”: झारखंड की पारंपरिक औषधीय धरोहर

Adivasi food: झारखंड के रांची, खूंटी, गुमला, सिमडेगा और पश्चिमी सिंहभूम जैसे जिलों में पाई जाने वाली यह परंपरा संथाल, हो, ओरांव और मुंडा जैसे आदिवासी समुदायों की सदियों पुरानी जीवनशैली का अहम हिस्सा रही है। जंगलों से गहरा रिश्ता रखने वाले ये समुदाय प्राकृतिक संसाधनों को भोजन और औषधि के रूप में उपयोग करते आए हैं। सर्दियों के मौसम में यह पारंपरिक खाद्य पदार्थ पारिवारिक भोज का विशेष हिस्सा बन जाता है और इसे प्यार से “जंगल का तोहफा” कहा जाता है। यह सिर्फ भोजन ही नहीं, बल्कि प्रकृति के प्रति सम्मान और संतुलित जीवनशैली का प्रतीक भी है। ओडिशा में इसे भौगोलिक संकेत (GI Tag) मिल चुका है, जिससे इसकी विशिष्टता और पारंपरिक महत्व को आधिकारिक मान्यता मिलती है। सेहत का प्राकृतिक कवच: ठंड से लेकर इम्युनिटी तक सर्दियों में इसका सेवन शरीर को अंदर से गर्म रखता है और ठंड व सर्दी-जुकाम से बचाव में सहायक माना जाता है। यह भूख बढ़ाने में भी मदद करती है, जिससे शरीर को भरपूर पोषण मिलता है। स्थानीय लोग मानते हैं कि यह प्राकृतिक इम्युनिटी बूस्टर की तरह काम करती है और शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत बनाती है। इसके नियमित सेवन से हड्डियाँ और मांसपेशियाँ मजबूत होती हैं, जिससे शारीरिक कमजोरी दूर होती है। ग्रामीण क्षेत्रों में इसे पारंपरिक घरेलू औषधि के रूप में भी अपनाया जाता है, खासकर बदलते मौसम में होने वाली बीमारियों से बचाव के लिए। रोगों से लड़ने में सहायक और बढ़ती लोकप्रियता आदिवासी समाज में यह धारणा प्रचलित है कि यह प्राकृतिक खाद्य पदार्थ कई तरह की बीमारियों में राहत पहुँचा सकता है। कोरोना, मलेरिया, पीलिया, बुखार, एनीमिया, उच्च रक्तचाप, मधुमेह, हृदय रोग और यहाँ तक कि कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों से लड़ने में इसे सहायक माना जाता है। परंपरागत विश्वासों के अनुसार, चींटियों के काटने से होने वाले बुखार में भी यह लाभकारी हो सकता है। इसके अलावा, वजन बढ़ाने, पाचन तंत्र को मजबूत करने और शरीर को डिटॉक्स करने में इसकी भूमिका बताई जाती है। आजकल शहरी क्षेत्रों में भी लोग इसे स्वास्थ्यवर्धक सुपरफूड के रूप में अपनाने लगे हैं, जिससे यह ग्रामीण और आदिवासी सीमाओं से बाहर निकलकर व्यापक पहचान बना रहा है।

रंगारंग सांस्कृतिक प्रस्तुति के साथ संवाद-ए ट्राइबल कॉन्क्लेव का हुआ समापन

जमशेदपुर: बिष्टुपुर स्थित गोपाल मैदान में बुधवार को रंगारंग सांस्कृतिक प्रस्तुति के साथ संवाद-ए ट्राइबल कॉन्क्लेव का समापन हुआ. इस पांच दिवसीय आयोजन के अंतिम दिन शाम को नागपुरी, संताली और जनजातीय लोकगीतों की गूंज के साथ पूरा मैदान झूम उठा. देश के विभिन्न राज्यों से आये कलाकारों ने अपने लोक संगीत और नृत्य से जनजातीय संस्कृति की विविधता का परिचय कराया. नागपुरी गायक अर्जुन लकड़ा और गायिका गरिमा एक्का ने संवाद अखड़ा मंच को संभाला. जैसे ही अर्जुन लकड़ा संवाद अखड़ा मंच पर पहुंचे, युवाओं में उत्साह की लहर दौड़ गयी. दर्शकों ने उनकी पसंदीदा गीतों की फरमाइश शुरू कर दी. लकड़ा ने अपने ट्रेडिंग गीतों की प्रस्तुति देकर माहौल को जोश से भर दिया. उनका गायकी का अंदाज और स्टेज कवरिंग शैली दर्शकों को थिरकने पर मजबूर कर रही थी. इसके बाद संताली गायिका कल्पना हांसदा ने अपनी मधुर आवाज में पारंपरिक व मॉडर्न गीत प्रस्तुत कर श्रोताओं का दिल जीत लिया. उनके गीतों की धुन पर युवाओं ने मैदान में समूह बनाकर नृत्य किया. रंग-बिरंगे पारंपरिक परिधानों में सजे युवाओं ने एक-दूसरे का हाथ थाम लोकनृत्य की लय पर झूमकर ट्राइबल संस्कृति की जीवंत छटा बिखेर दी. जनजातीय संगीत पर मंत्रमुग्ध हुए दर्शक कार्यक्रम में सैकड़ों की संख्या में स्थानीय लोग और युवा उपस्थित थे. हर गीत, हर प्रस्तुति पर तालियों की गड़गड़ाहट गूंजती रही. युवाओं ने अपने मोबाइल से वीडियो बनाकर इस सांस्कृतिक माहौल को कैद किया. सिर्फ झारखंड ही नहीं, बल्कि मेघालय, सिक्किम, नागालैंड, ओडिशा और छत्तीसगढ़ से आये कलाकारों ने भी अपनी पारंपरिक कला का प्रदर्शन कर खूब वाहवाही बटोरी. संवाद अखड़ा के मंच पर इन कलाकारों ने लोकनृत्य, पुनर्जीवित रिवाजों और जनजातीय संगीत के सुरों से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया. कार्यक्रम समापन की यह शाम सांस्कृतिक विविधता का उत्सव बना. लौहनगरी जमशेदपुर की धरती पर कलाकारों ने एकता और कला के नये रंग भी बिखेरा. स्टॉलों से एक करोड़ से अधिकार का हुआ कारोबार संवाद-ए ट्राइबल कॉन्क्लेव में जनजातीय व्यंजनों के स्टॉल समेत कला और हस्तशिल्प व पारंपरिक उपचार के स्टॉल्स के कई स्टॉल भी लगाये थे. जहां शहर समेत कोल्हान के विभिन्न जगहों से आये लोगों ने जमकर खरीदारी भी की. टीएसएफ के रिपोर्ट के मुताबिक इसबार संवाद-ए ट्राइबल कॉन्क्लेव में एक करोड़ से अधिक का कारोबार हुआ है. इससे यह बात साबित होती है कि जनजातीय समाज की वस्तुएं अब ब्रांड बन चुकी हैं. जिसे आदिवासी ही नहीं अन्य समाज व समुदाय के लोग भी खूब पसंद कर रहे हैं. संवाद फेलोशिप के लिए नौ फेलो का किया चयन टाटा स्टील फाउंडेशन ने संवाद फेलोशिप 2025 के लिए 9 फेलो के चयन की भी घोषणा की. इनका चयन 572 आवेदनों में से किया गया, जो 25 राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों की 122 जनजातियों का प्रतिनिधित्व कर रहे थे. जिनमें विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूहों से 10 आवेदक शामिल थे. फाउंडेशन ने पिछली कई फेलोशिप परियोजनाओं के पूरा होने का भी जश्न मनाया.

झारखंड आंदोलनकारी सामाजिक सुरक्षा, सम्मान व अधिकारों के मुद्दें को लेकर घाटशिला में जुटेंगे

जमशेदपुर: राज्यभर के झारखंड आंदोलनकारी सामाजिक सुरक्षा, सम्मान और अधिकारों के मुद्दे पर एकजुट हो रहे हैं. इसी मुद्दे को लेकर ‘झारखंड आंदोलनकारी सेनानी समन्वय आह्वान’ ने 22 नवंबर को बाबा तिलका माझी क्लब, फुलडुंगरी, घाटशिला में एक बैठक बुलाया गया है. आयोजन समिति के प्रो. श्याम मुर्मू, संतोष सोरेन, आदित्य प्रधान, सुराई बास्के व अजीत तिर्की ने संयुक्त रूप से बताया कि वर्तमान सामाजिक सुरक्षा नीति सीमित होने के कारण हजारों आंदोलनकारी विशेषकर वे जो जेल नहीं गये थे, पर आंदोलन में उनका सक्रिय भूमिका रहा है. लेकिन वे आज भी पेंशन, स्वास्थ्य सुरक्षा और सम्मानजनक जीवन से वंचित है. इस स्थिति में अब एक मजबूत संयुक्त मंच की आवश्यकता महसूस की जा रही है. ताकि आंदोलन मजबूती के साथ अपनी मांगों को सरकार के सामने रख सके. उन्होंने सभी आंदोलनकारियों से अपील किया है कि वे उक्त बैठक में आवश्यक रूप से भाग ले.   ये हैं प्रमुख मांगें -सभी आंदोलनकारियों को समान सामाजिक सुरक्षा एवं प्रशस्ति पत्र दिया जाये -पेंशन में उचित वृद्धि तथा नियमित भुगतान किया जाये -आंदोलनकारियों को स्वास्थ्य बीमा की सुविधा प्रदान की जाये -आंदोलनकारियों के आश्रितों को सरकारी नौकरी में प्राथमिकता दिया जाये -झारखंड आंदोलनकारी संग्रहालय सह स्मारक का निर्माण कराया जाये -झारखंड आंदोलनकारी आयोग का पुनर्गठन किया जाये

झारखंड राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव 2025 का भव्य आगाज, सांस्कृतिक रंगों संग सिनेमा का जश्न शुरू

FILM FESTIVAL: श्रीनाथ यूनिवर्सिटी के प्रेक्षागृह में सोमवार को झारखंड राष्ट्रीय फ़िल्म महोत्सव – 2025 (छठा संस्करण) का शुभारंभ बेहद गरिमामय और उत्साहपूर्ण वातावरण में हुआ। फ़िल्म और कला जगत से जुड़े अनेक गणमान्यों की उपस्थिति ने उद्घाटन समारोह को खास बना दिया। मुख्य अतिथि के रूप में आदित्यपुर नगर निगम की उपनगर आयुक्त परुल सिंह तथा सह मुख्य अतिथि के रूप में श्रीनाथ यूनिवर्सिटी के कुलपति सुखदेव महतो ने समारोह की शोभा बढ़ाई। विशिष्ट सम्मानित अतिथियों में डॉ. जे.एन. दास,डॉ ज्योति सिंह, पूरबी घोष, पवन कुमार साव, चंचल भाटिया, नेहा तिवार, ज्योति सेनापति, पूर्व वार्ड पार्षद नीतू शर्मा शामिल रहे।   समारोह की शुरुआत परिचय और स्वागत के साथ हुई। तत्पश्चात अतिथियों ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्वलित कर महोत्सव का उद्घाटन किया। इसके बाद सांस्कृतिक टीम द्वारा प्रस्तुत आकर्षक स्वागत नृत्य ने मंच का माहौल जीवंत कर दिया। JNFF के संस्थापक संजय सतपथी और राजू मित्रा ने स्वागत भाषण में महोत्सव की यात्रा, उद्देश्य और झारखंड में फ़िल्म संस्कृति के विस्तार पर प्रकाश डाला। मुख्य अतिथियों एवं विशिष्ट अतिथियों को पुष्पगुच्छ देकर सम्मानित किया गया। सभी मान्यवरों ने अपने प्रेरक संबोधन से कार्यक्रम की गरिमा को नई ऊँचाई दी।   मंचीय कार्यक्रम के दौरान लोकप्रिय शॉर्ट फ़िल्म “Silk Coffin” की विशेष स्क्रीनिंग की गई, जिसे दर्शकों ने विशेष प्रशंसा दी। महोत्सव को सफल बनाने में संस्थापकों के साथ-साथ क्रिएटिव डायरेक्टर शिवांगी सिंह,डॉ. शालिनी प्रसाद का रचनात्मक नेतृत्व अत्यंत प्रभावी रहा। झारखंड राष्ट्रीय फ़िल्म महोत्सव 08 से 13 दिसंबर तक आयोजित होगा। 09 से 12 दिसंबर तक विभिन्न श्रेणियों की फिल्मों का प्रदर्शन किया जाएगा, जबकि 13 दिसंबर को समापन एवं पुरस्कार समारोह (Award Night) XLRI, जमशेदपुर में होगा।

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“जंगल का तोहफा”: झारखंड की पारंपरिक औषधीय धरोहर

Khoboriya दिसम्बर 8, 2025 0