MAHARASTRA : महाराष्ट्र के वर्धा जिले के सेवाग्राम नयी तालीम समिति में आदिवासी शिक्षा नेटवर्क की ओर से आयोजित तीन दिवसीय कार्यशाला में मानसिंह बास्के की फिल्म ‘सारी सारजोम’ की स्क्रीनिंग की गयी. इस कार्यक्रम में देशभर से आदिवासी शिक्षा और समाज के लिए काम करने वाले कार्यकर्ता और विशेषज्ञ इकट्ठा हुए थे. फिल्म ‘सारी सारजोम’ में आदिवासी जीवन और उनके संघर्षों को चित्रित किया गया है. इसका निर्देशन पुणे फिल्म इंस्टीट्यूट से प्रशिक्षित मानसिंह बास्के ने किया है. फिल्म की कहानी झारखंड की पृष्ठभूमि पर आधारित है और इसमें आदिवासियों के जल, जंगल और जमीन के अधिकार की लड़ाई को दर्शाया गया है. इसमें एक आदिवासी व्यक्ति को दिखाया गया है, जो सिस्टम के जाल में फंसकर अपनी पहचान और अधिकार को बचाने के लिए संघर्ष करता है.
गुड़ाबांदा के बेनागाडिया गांव के रहने वाले हैं मानसिंह बास्के
लेखक और निर्देशक मानसिंह बास्के पूर्वी सिंहभूम जिले के गुड़ाबांदा के बेनागाडिया गांव के रहने वाले हैं. भारतीय फिल्म और टेलीविजन संस्थान (एफटीआइआइ), पुणे से निर्देशन में प्रशिक्षित हैं. वर्तमान में वह मुंबई और झारखंड दोनों जगह फिल्म निर्माण के क्षेत्र में काम कर रहे हैं. वह अब तक सात शॉर्ट फिल्में और तीन डॉक्यूमेंट्री बना चुके हैं. मानसिंह वर्तमान में एक संताली फीचर फिल्म बनाने की तैयारी कर रहे हैं. फिल्म ‘सारी सारजोम’ के सिनेमेटोग्राफर सायन मोदक, एडिटर राज आनंद और सह-लेखक विदित होरो सभी झारखंड से हैं. फिल्म की साउंड रिकॉर्डिंग और डिजाइन युगल शर्मा और आर्ट डायरेक्टर अर्पित नाग और रॉबिन थापा ने किया है. ये सभी पुणे फिल्म इंस्टीट्यूट के विद्यार्थी रहे हैं. फिल्म के मुख्य कलाकारों में अनुराग लुगुन, सुकुमार टुडू, रेणुका दफ्तरदार, कैलाश, धर्मेंद्र और हर्ष प्रमुख हैं.
आदिवासियों की आवाज है ‘सारी सारजोम’
मानसिंह बास्के आदिवासी सिनेमा को पहचान दिलाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. उन्होंने अपनी फिल्म ‘सारी सारजोम’ के जरिये आदिवासियों की समस्याओं और संघर्षों को प्रभावी तरीके से प्रस्तुत करने की कोशिश की है. यह फिल्म न केवल झारखंड, बल्कि पूरे देश के आदिवासी समुदाय की आवाज को उठाती है. मानसिंह बास्के का कहना है कि वे अपनी फिल्मी कहानियों के माध्यम से आदिवासियों के अधिकारों और उनकी जीवनशैली को लोगों के सामने लाते हैं. आज आदिवासी समाज विभिन्न समस्याओं से चौतरफा घिर गया है. ऐसे में देश व दुनिया के सामने उनके जीवन, संस्कृति, रहन-सहन आदि के बारे में बताना जरूरी हो गया है, ताकि लोग उनकी स्थिति को जान व समझ सकें.
झारखंड के कई जिलों में पिछुआ हवाओं के कारण ठंड में तेज बढ़ोतरी हुई है, जिससे तापमान में गिरावट दर्ज की गई है। मौसम विज्ञान केंद्र रांची के अनुसार, पिछुआ हवाएं उत्तर से उत्तर-पश्चिम दिशा से चल रही हैं, जिनके कारण न्यूनतम तापमान में लगभग चार डिग्री सेल्सियस तक की गिरावट आई है। राजधानी रांची सहित आसपास के क्षेत्रों में सुबह का तापमान करीब 10 डिग्री सेल्सियस के आसपास है, जिससे सुबह के समय काफी ठंडक बढ़ गई है। इस वर्ष सर्दी ने अपनी दस्तक समय से पहले दे दी है, क्योंकि मौसम विभाग ने पहले ही नवंबर के अंत से ठंड बढ़ने की चेतावनी दी थी। रातों में तापमान करीब 9 डिग्री तक गिर जाता है, जिससे पूरे क्षेत्र में ठंड का असर महसूस किया जा रहा है। राज्य के अधिकांश जिलों में मंगलवार को मौसम साफ और शुष्क रहा और मध्यम तेजी से हवा चली, जिससे ठंडी हवा का अनुभव हुआ। पिछले 24 घंटों में गोड्डा जिले में अधिकतम तापमान 28.2 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया, जबकि गुमला में न्यूनतम तापमान 8.8 डिग्री सेल्सियस रिकॉर्ड हुआ। रांची में अधिकतम तापमान 24.6 और न्यूनतम 11.1 डिग्री सेल्सियस रहा। कृषि विज्ञान केंद्र ने किसानों को सलाह दी है कि इस ठंड में फसलों की सुरक्षा के लिए सिंचाई का विशेष ख्याल रखा जाए ताकि वे प्रभावित न हों। मौसम विभाग ने सूचना दी है कि बंगाल की खाड़ी में दबाव का क्षेत्र बन रहा है, जिससे चक्रवात बनने की संभावना है। यह चक्रवात झारखंड सहित आसपास के क्षेत्रों के मौसम पर असर डाल सकता है। इस कारण अगले दो दिनों में तापमान में और गिरावट आने की संभावना है और बारिश या तेज हवाओं के चलते खेल आयोजन प्रभावित हो सकता है।राजधानी रांची सहित अन्य जिलों में पछुआ हवाओं के कारण कनकनी बढ़ गई है, जिससे सुबह और शाम की ठंड अधिक महसूस होती है।
Adivasi food: झारखंड के रांची, खूंटी, गुमला, सिमडेगा और पश्चिमी सिंहभूम जैसे जिलों में पाई जाने वाली यह परंपरा संथाल, हो, ओरांव और मुंडा जैसे आदिवासी समुदायों की सदियों पुरानी जीवनशैली का अहम हिस्सा रही है। जंगलों से गहरा रिश्ता रखने वाले ये समुदाय प्राकृतिक संसाधनों को भोजन और औषधि के रूप में उपयोग करते आए हैं। सर्दियों के मौसम में यह पारंपरिक खाद्य पदार्थ पारिवारिक भोज का विशेष हिस्सा बन जाता है और इसे प्यार से “जंगल का तोहफा” कहा जाता है। यह सिर्फ भोजन ही नहीं, बल्कि प्रकृति के प्रति सम्मान और संतुलित जीवनशैली का प्रतीक भी है। ओडिशा में इसे भौगोलिक संकेत (GI Tag) मिल चुका है, जिससे इसकी विशिष्टता और पारंपरिक महत्व को आधिकारिक मान्यता मिलती है। सेहत का प्राकृतिक कवच: ठंड से लेकर इम्युनिटी तक सर्दियों में इसका सेवन शरीर को अंदर से गर्म रखता है और ठंड व सर्दी-जुकाम से बचाव में सहायक माना जाता है। यह भूख बढ़ाने में भी मदद करती है, जिससे शरीर को भरपूर पोषण मिलता है। स्थानीय लोग मानते हैं कि यह प्राकृतिक इम्युनिटी बूस्टर की तरह काम करती है और शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत बनाती है। इसके नियमित सेवन से हड्डियाँ और मांसपेशियाँ मजबूत होती हैं, जिससे शारीरिक कमजोरी दूर होती है। ग्रामीण क्षेत्रों में इसे पारंपरिक घरेलू औषधि के रूप में भी अपनाया जाता है, खासकर बदलते मौसम में होने वाली बीमारियों से बचाव के लिए। रोगों से लड़ने में सहायक और बढ़ती लोकप्रियता आदिवासी समाज में यह धारणा प्रचलित है कि यह प्राकृतिक खाद्य पदार्थ कई तरह की बीमारियों में राहत पहुँचा सकता है। कोरोना, मलेरिया, पीलिया, बुखार, एनीमिया, उच्च रक्तचाप, मधुमेह, हृदय रोग और यहाँ तक कि कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों से लड़ने में इसे सहायक माना जाता है। परंपरागत विश्वासों के अनुसार, चींटियों के काटने से होने वाले बुखार में भी यह लाभकारी हो सकता है। इसके अलावा, वजन बढ़ाने, पाचन तंत्र को मजबूत करने और शरीर को डिटॉक्स करने में इसकी भूमिका बताई जाती है। आजकल शहरी क्षेत्रों में भी लोग इसे स्वास्थ्यवर्धक सुपरफूड के रूप में अपनाने लगे हैं, जिससे यह ग्रामीण और आदिवासी सीमाओं से बाहर निकलकर व्यापक पहचान बना रहा है।
FILM FESTIVAL: श्रीनाथ यूनिवर्सिटी के प्रेक्षागृह में सोमवार को झारखंड राष्ट्रीय फ़िल्म महोत्सव – 2025 (छठा संस्करण) का शुभारंभ बेहद गरिमामय और उत्साहपूर्ण वातावरण में हुआ। फ़िल्म और कला जगत से जुड़े अनेक गणमान्यों की उपस्थिति ने उद्घाटन समारोह को खास बना दिया। मुख्य अतिथि के रूप में आदित्यपुर नगर निगम की उपनगर आयुक्त परुल सिंह तथा सह मुख्य अतिथि के रूप में श्रीनाथ यूनिवर्सिटी के कुलपति सुखदेव महतो ने समारोह की शोभा बढ़ाई। विशिष्ट सम्मानित अतिथियों में डॉ. जे.एन. दास,डॉ ज्योति सिंह, पूरबी घोष, पवन कुमार साव, चंचल भाटिया, नेहा तिवार, ज्योति सेनापति, पूर्व वार्ड पार्षद नीतू शर्मा शामिल रहे। समारोह की शुरुआत परिचय और स्वागत के साथ हुई। तत्पश्चात अतिथियों ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्वलित कर महोत्सव का उद्घाटन किया। इसके बाद सांस्कृतिक टीम द्वारा प्रस्तुत आकर्षक स्वागत नृत्य ने मंच का माहौल जीवंत कर दिया। JNFF के संस्थापक संजय सतपथी और राजू मित्रा ने स्वागत भाषण में महोत्सव की यात्रा, उद्देश्य और झारखंड में फ़िल्म संस्कृति के विस्तार पर प्रकाश डाला। मुख्य अतिथियों एवं विशिष्ट अतिथियों को पुष्पगुच्छ देकर सम्मानित किया गया। सभी मान्यवरों ने अपने प्रेरक संबोधन से कार्यक्रम की गरिमा को नई ऊँचाई दी। मंचीय कार्यक्रम के दौरान लोकप्रिय शॉर्ट फ़िल्म “Silk Coffin” की विशेष स्क्रीनिंग की गई, जिसे दर्शकों ने विशेष प्रशंसा दी। महोत्सव को सफल बनाने में संस्थापकों के साथ-साथ क्रिएटिव डायरेक्टर शिवांगी सिंह,डॉ. शालिनी प्रसाद का रचनात्मक नेतृत्व अत्यंत प्रभावी रहा। झारखंड राष्ट्रीय फ़िल्म महोत्सव 08 से 13 दिसंबर तक आयोजित होगा। 09 से 12 दिसंबर तक विभिन्न श्रेणियों की फिल्मों का प्रदर्शन किया जाएगा, जबकि 13 दिसंबर को समापन एवं पुरस्कार समारोह (Award Night) XLRI, जमशेदपुर में होगा।
जमशेदपुर: बिष्टुपुर स्थित गोपाल मैदान में बुधवार को रंगारंग सांस्कृतिक प्रस्तुति के साथ संवाद-ए ट्राइबल कॉन्क्लेव का समापन हुआ. इस पांच दिवसीय आयोजन के अंतिम दिन शाम को नागपुरी, संताली और जनजातीय लोकगीतों की गूंज के साथ पूरा मैदान झूम उठा. देश के विभिन्न राज्यों से आये कलाकारों ने अपने लोक संगीत और नृत्य से जनजातीय संस्कृति की विविधता का परिचय कराया. नागपुरी गायक अर्जुन लकड़ा और गायिका गरिमा एक्का ने संवाद अखड़ा मंच को संभाला. जैसे ही अर्जुन लकड़ा संवाद अखड़ा मंच पर पहुंचे, युवाओं में उत्साह की लहर दौड़ गयी. दर्शकों ने उनकी पसंदीदा गीतों की फरमाइश शुरू कर दी. लकड़ा ने अपने ट्रेडिंग गीतों की प्रस्तुति देकर माहौल को जोश से भर दिया. उनका गायकी का अंदाज और स्टेज कवरिंग शैली दर्शकों को थिरकने पर मजबूर कर रही थी. इसके बाद संताली गायिका कल्पना हांसदा ने अपनी मधुर आवाज में पारंपरिक व मॉडर्न गीत प्रस्तुत कर श्रोताओं का दिल जीत लिया. उनके गीतों की धुन पर युवाओं ने मैदान में समूह बनाकर नृत्य किया. रंग-बिरंगे पारंपरिक परिधानों में सजे युवाओं ने एक-दूसरे का हाथ थाम लोकनृत्य की लय पर झूमकर ट्राइबल संस्कृति की जीवंत छटा बिखेर दी. जनजातीय संगीत पर मंत्रमुग्ध हुए दर्शक कार्यक्रम में सैकड़ों की संख्या में स्थानीय लोग और युवा उपस्थित थे. हर गीत, हर प्रस्तुति पर तालियों की गड़गड़ाहट गूंजती रही. युवाओं ने अपने मोबाइल से वीडियो बनाकर इस सांस्कृतिक माहौल को कैद किया. सिर्फ झारखंड ही नहीं, बल्कि मेघालय, सिक्किम, नागालैंड, ओडिशा और छत्तीसगढ़ से आये कलाकारों ने भी अपनी पारंपरिक कला का प्रदर्शन कर खूब वाहवाही बटोरी. संवाद अखड़ा के मंच पर इन कलाकारों ने लोकनृत्य, पुनर्जीवित रिवाजों और जनजातीय संगीत के सुरों से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया. कार्यक्रम समापन की यह शाम सांस्कृतिक विविधता का उत्सव बना. लौहनगरी जमशेदपुर की धरती पर कलाकारों ने एकता और कला के नये रंग भी बिखेरा. स्टॉलों से एक करोड़ से अधिकार का हुआ कारोबार संवाद-ए ट्राइबल कॉन्क्लेव में जनजातीय व्यंजनों के स्टॉल समेत कला और हस्तशिल्प व पारंपरिक उपचार के स्टॉल्स के कई स्टॉल भी लगाये थे. जहां शहर समेत कोल्हान के विभिन्न जगहों से आये लोगों ने जमकर खरीदारी भी की. टीएसएफ के रिपोर्ट के मुताबिक इसबार संवाद-ए ट्राइबल कॉन्क्लेव में एक करोड़ से अधिक का कारोबार हुआ है. इससे यह बात साबित होती है कि जनजातीय समाज की वस्तुएं अब ब्रांड बन चुकी हैं. जिसे आदिवासी ही नहीं अन्य समाज व समुदाय के लोग भी खूब पसंद कर रहे हैं. संवाद फेलोशिप के लिए नौ फेलो का किया चयन टाटा स्टील फाउंडेशन ने संवाद फेलोशिप 2025 के लिए 9 फेलो के चयन की भी घोषणा की. इनका चयन 572 आवेदनों में से किया गया, जो 25 राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों की 122 जनजातियों का प्रतिनिधित्व कर रहे थे. जिनमें विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूहों से 10 आवेदक शामिल थे. फाउंडेशन ने पिछली कई फेलोशिप परियोजनाओं के पूरा होने का भी जश्न मनाया.
जमशेदपुर: राज्यभर के झारखंड आंदोलनकारी सामाजिक सुरक्षा, सम्मान और अधिकारों के मुद्दे पर एकजुट हो रहे हैं. इसी मुद्दे को लेकर ‘झारखंड आंदोलनकारी सेनानी समन्वय आह्वान’ ने 22 नवंबर को बाबा तिलका माझी क्लब, फुलडुंगरी, घाटशिला में एक बैठक बुलाया गया है. आयोजन समिति के प्रो. श्याम मुर्मू, संतोष सोरेन, आदित्य प्रधान, सुराई बास्के व अजीत तिर्की ने संयुक्त रूप से बताया कि वर्तमान सामाजिक सुरक्षा नीति सीमित होने के कारण हजारों आंदोलनकारी विशेषकर वे जो जेल नहीं गये थे, पर आंदोलन में उनका सक्रिय भूमिका रहा है. लेकिन वे आज भी पेंशन, स्वास्थ्य सुरक्षा और सम्मानजनक जीवन से वंचित है. इस स्थिति में अब एक मजबूत संयुक्त मंच की आवश्यकता महसूस की जा रही है. ताकि आंदोलन मजबूती के साथ अपनी मांगों को सरकार के सामने रख सके. उन्होंने सभी आंदोलनकारियों से अपील किया है कि वे उक्त बैठक में आवश्यक रूप से भाग ले. ये हैं प्रमुख मांगें -सभी आंदोलनकारियों को समान सामाजिक सुरक्षा एवं प्रशस्ति पत्र दिया जाये -पेंशन में उचित वृद्धि तथा नियमित भुगतान किया जाये -आंदोलनकारियों को स्वास्थ्य बीमा की सुविधा प्रदान की जाये -आंदोलनकारियों के आश्रितों को सरकारी नौकरी में प्राथमिकता दिया जाये -झारखंड आंदोलनकारी संग्रहालय सह स्मारक का निर्माण कराया जाये -झारखंड आंदोलनकारी आयोग का पुनर्गठन किया जाये
MAHARASTRA : महाराष्ट्र के वर्धा जिले के सेवाग्राम नयी तालीम समिति में आदिवासी शिक्षा नेटवर्क की ओर से आयोजित तीन दिवसीय कार्यशाला में मानसिंह बास्के की फिल्म ‘सारी सारजोम’ की स्क्रीनिंग की गयी. इस कार्यक्रम में देशभर से आदिवासी शिक्षा और समाज के लिए काम करने वाले कार्यकर्ता और विशेषज्ञ इकट्ठा हुए थे. फिल्म ‘सारी सारजोम’ में आदिवासी जीवन और उनके संघर्षों को चित्रित किया गया है. इसका निर्देशन पुणे फिल्म इंस्टीट्यूट से प्रशिक्षित मानसिंह बास्के ने किया है. फिल्म की कहानी झारखंड की पृष्ठभूमि पर आधारित है और इसमें आदिवासियों के जल, जंगल और जमीन के अधिकार की लड़ाई को दर्शाया गया है. इसमें एक आदिवासी व्यक्ति को दिखाया गया है, जो सिस्टम के जाल में फंसकर अपनी पहचान और अधिकार को बचाने के लिए संघर्ष करता है. गुड़ाबांदा के बेनागाडिया गांव के रहने वाले हैं मानसिंह बास्के लेखक और निर्देशक मानसिंह बास्के पूर्वी सिंहभूम जिले के गुड़ाबांदा के बेनागाडिया गांव के रहने वाले हैं. भारतीय फिल्म और टेलीविजन संस्थान (एफटीआइआइ), पुणे से निर्देशन में प्रशिक्षित हैं. वर्तमान में वह मुंबई और झारखंड दोनों जगह फिल्म निर्माण के क्षेत्र में काम कर रहे हैं. वह अब तक सात शॉर्ट फिल्में और तीन डॉक्यूमेंट्री बना चुके हैं. मानसिंह वर्तमान में एक संताली फीचर फिल्म बनाने की तैयारी कर रहे हैं. फिल्म ‘सारी सारजोम’ के सिनेमेटोग्राफर सायन मोदक, एडिटर राज आनंद और सह-लेखक विदित होरो सभी झारखंड से हैं. फिल्म की साउंड रिकॉर्डिंग और डिजाइन युगल शर्मा और आर्ट डायरेक्टर अर्पित नाग और रॉबिन थापा ने किया है. ये सभी पुणे फिल्म इंस्टीट्यूट के विद्यार्थी रहे हैं. फिल्म के मुख्य कलाकारों में अनुराग लुगुन, सुकुमार टुडू, रेणुका दफ्तरदार, कैलाश, धर्मेंद्र और हर्ष प्रमुख हैं. आदिवासियों की आवाज है ‘सारी सारजोम’ मानसिंह बास्के आदिवासी सिनेमा को पहचान दिलाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. उन्होंने अपनी फिल्म ‘सारी सारजोम’ के जरिये आदिवासियों की समस्याओं और संघर्षों को प्रभावी तरीके से प्रस्तुत करने की कोशिश की है. यह फिल्म न केवल झारखंड, बल्कि पूरे देश के आदिवासी समुदाय की आवाज को उठाती है. मानसिंह बास्के का कहना है कि वे अपनी फिल्मी कहानियों के माध्यम से आदिवासियों के अधिकारों और उनकी जीवनशैली को लोगों के सामने लाते हैं. आज आदिवासी समाज विभिन्न समस्याओं से चौतरफा घिर गया है. ऐसे में देश व दुनिया के सामने उनके जीवन, संस्कृति, रहन-सहन आदि के बारे में बताना जरूरी हो गया है, ताकि लोग उनकी स्थिति को जान व समझ सकें.
Tribal Films : झारखंड में संताली समेत अन्य जनजातीय और क्षेत्रीय भाषाओं में बनने वाली फिल्में अब सिर्फ स्थानीय मनोरंजन का माध्यम नहीं रहीं, बल्कि ये अपनी सांस्कृतिक पहचान को सशक्त करने का जरिया बन चुकी हैं। संताली, मुंडारी, कुड़ुख, नागपुरी, खोरठा और हिंदी के मिश्रित प्रयोग से तैयार हो रही फिल्में आदिवासी समाज की परंपराओं, रीति-रिवाजों, संघर्षों और सपनों को बड़े पर्दे पर जीवंत कर रही हैं। पहले जहां ऐसी फिल्में केवल गांवों के मेला-ठेला या अस्थायी स्क्रीनिंग तक सीमित थीं, वहीं अब मल्टीप्लेक्स, फिल्म फेस्टिवल और डिजिटल प्लेटफॉर्म पर इन्हें पहचान मिल रही है। यह बदलाव झारखंड के सिनेमा के लिए एक सकारात्मक संकेत है। डिजिटल प्लेटफॉर्म से खुलते नए दरवाजे डिजिटल युग ने क्षेत्रीय सिनेमा को सबसे बड़ा सहारा दिया है। आज यूट्यूब, ओटीटी प्लेटफॉर्म और सोशल मीडिया के माध्यम से संताली और अन्य जनजातीय फिल्मों को वैश्विक दर्शक मिल रहे हैं। पहले जो फिल्में केवल सीमित दर्शकों तक ही पहुंच पाती थीं, अब वे देश-विदेश में बसे झारखंडी समाज तक आसानी से पहुंच रही हैं। कम बजट में वेब सीरीज, शॉर्ट फिल्म और डॉक्यूमेंट्री का निर्माण आसान हुआ है। इससे नए कलाकारों, निर्देशकों और लेखकों को मौका मिल रहा है, जिससे यह सिनेमा लगातार समृद्ध होता जा रहा है। स्थानीय कलाकारों और तकनीशियनों के लिए नए अवसर झारखंड का जनजातीय सिनेमा अब रोजगार और स्वावलंबन का मजबूत माध्यम बन रहा है। संताली और नागपुरी फिल्मों में स्थानीय युवा अभिनेता, अभिनेत्री, कैमरा मैन, एडिटर, मेकअप आर्टिस्ट और म्यूजिक डायरेक्टर सक्रिय रूप से जुड़ रहे हैं। इससे गांव और कस्बों के युवाओं को पलायन किए बिना अपने ही क्षेत्र में काम करने का अवसर मिल रहा है। कई फिल्म निर्माण संस्थाएं और ट्रेनिंग वर्कशॉप भी शुरू हो रही हैं, जो तकनीकी रूप से इस क्षेत्र को मजबूत बना रही हैं। यह बदलाव आने वाले समय में झारखंड को क्षेत्रीय सिनेमा का बड़ा केंद्र बना सकता है। सरकारी सहयोग और फिल्मी माहौल का विस्तार राज्य सरकार की फिल्म नीतियां और अनुदान योजनाएं भी क्षेत्रीय फिल्मों को आगे बढ़ा रही हैं। शूटिंग के लिए प्राकृतिक लोकेशन, रियायतें और परमिट की सुविधाएं मिलने से फिल्म निर्माताओं का झुकाव झारखंड की ओर बढ़ा है। इसके साथ ही रांची, जमशेदपुर, दुमका और चाईबासा जैसे शहरों में फिल्म फेस्टिवल, शॉर्ट फिल्म प्रतियोगिताएं और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। इससे संताली और अन्य जनजातीय फिल्मों को न सिर्फ सम्मान मिल रहा है बल्कि निवेशकों का भरोसा भी बढ़ रहा है। संस्कृति, आत्मसम्मान और नई पीढ़ी का सिनेमा जनजातीय फिल्मों का सबसे बड़ा सकारात्मक पहलू यह है कि ये नई पीढ़ी को अपनी जड़ों से जोड़ रही हैं। संताली और अन्य भाषाओं की फिल्मों के माध्यम से युवा वर्ग अपनी भाषा, नृत्य, संगीत, वेशभूषा और जीवन मूल्यों को समझ रहा है। ये फिल्में केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि सांस्कृतिक शिक्षा का भी माध्यम बन रही हैं। आने वाले समय में जब तकनीक और प्रशिक्षण का दायरा और बढ़ेगा, तब झारखंड का क्षेत्रीय सिनेमा न केवल राज्य बल्कि पूरे देश में अपनी अलग और मजबूत पहचान स्थापित करेगा। यह भविष्य की ओर बढ़ता एक ऐसा सुनहरा रास्ता है, जिसमें संस्कृति, रोजगार और रचनात्मकता तीनों का सुंदर संगम दिखाई देता है।
बॉलीवुड के मशहूर अभिनेता धर्मेंद्र का आज निधन हो गया। वे पिछले कुछ समय से अस्वस्थ थे और घर पर ही उनका इलाज चल रहा था। कुछ दिन पहले उन्हें मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में भर्ती कराया गया था। बताया जा रहा है कि 10 नवंबर को उनकी स्थिति काफी गंभीर हो गई थी और उन्हें वेंटिलेटर सपोर्ट पर रखा गया था। उस दौरान सलमान खान, शाहरुख खान और गोविंदा जैसे कई सितारे अस्पताल पहुंचकर उनका हालचाल लेने आए थे।हालांकि उस समय उनके निधन की अफवाहें भी उड़ी थीं, जिन्हें उनकी पत्नी हेमा मालिनी और बेटी ईशा देओल ने सोशल मीडिया पर खारिज किया था। बेटे सनी देओल ने भी बताया था कि इलाज का असर हो रहा है और पिता की तबीयत सुधार पर है। लेकिन आज अभिनेता ने अंतिम सांस ली। उनके जाने से पूरे फिल्म जगत और प्रशंसकों में शोक की लहर दौड़ गई है।धर्मेंद्र 8 दिसंबर को अपना 90वां जन्मदिन मनाने वाले थे। परिवार उनके जन्मदिन की तैयारियों में लगा था, लेकिन उससे महज 14 दिन पहले यह दुखद खबर आ गई। सोशल मीडिया पर प्रशंसक और साथी कलाकार उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि दे रहे हैं।धर्मेंद्र के करियर की बात करें तो वे हाल ही में शाहिद कपूर और कृति सेनन की फिल्म तेरी बातों में ऐसा उलझा जिया में नजर आए थे। उनकी आखिरी फिल्म इक्कीस है, जिसका निर्देशन श्रीराम राघवन ने किया है। इसमें वे अमिताभ बच्चन के नाती अगस्त्य नंदा के पिता की भूमिका निभाते दिखेंगे।