Tribal lifestyle आधुनिक भागदौड़ और उपभोक्तावादी जीवनशैली के बीच आदिवासी समाज की सरल, संतुलित और प्रकृति-केंद्रित जीवनशैली आज पूरी दुनिया के लिए प्रेरणा बनती जा रही है। सदियों से जंगल, पहाड़, नदी और जमीन से जुड़ी उनकी परंपराएँ न केवल पर्यावरण संरक्षण का संदेश देती हैं, बल्कि सामाजिक समरसता का भी सशक्त उदाहरण प्रस्तुत करती हैं। आज जरूरत इस बात की है कि आदिवासी जीवनशैली के मूल्यों को समाज के हर वर्ग तक पहुंचाया जाए।
प्रकृति के साथ सामंजस्य का जीवन दर्शन
आदिवासी समुदाय हमेशा से प्रकृति को केवल संसाधन नहीं, बल्कि माता के रूप में देखते आए हैं। पेड़ काटने से पहले पूजा, नदी और पहाड़ों को देवता के समान मानने की परंपरा उनके गहरे पर्यावरणीय चेतना को दर्शाती है। वे जरूरत भर का ही उपभोग करने में विश्वास रखते हैं, जिससे प्राकृतिक संसाधनों का संतुलन बना रहता है। आज जब दुनिया जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण की गंभीर समस्या से जूझ रही है, तब आदिवासी समाज की यह सोच अत्यंत प्रासंगिक हो जाती है।
सामूहिकता और समानता पर आधारित सामाजिक व्यवस्था
आदिवासी जीवनशैली की सबसे बड़ी विशेषता है उनकी सामूहिक जीवन व्यवस्था। गांव के हर व्यक्ति को समान सम्मान देने की परंपरा, मिल-जुलकर काम करना और सुख-दुःख में साथ खड़े रहना उनकी पहचान है। उनके समाज में प्रतियोगिता से अधिक सहयोग की भावना देखने को मिलती है। विवाह, त्योहार, खेती और सामुदायिक कार्यक्रमों में पूरा गांव एक परिवार की तरह भागीदारी निभाता है। आज के समय में जब समाज तेजी से व्यक्तिगत स्वार्थ की ओर बढ़ रहा है, तब आदिवासी समुदाय का यह सामूहिक दृष्टिकोण समाज को नई दिशा देने की क्षमता रखता है।
सरल जीवन, उच्च विचार का व्यावहारिक उदाहरण
आदिवासी समाज “कम में संतोष” की भावना को अपने जीवन में सहज रूप से अपनाता है। साधारण वस्त्र, स्थानीय भोजन और प्राकृतिक औषधियों के प्रयोग से वे तन और मन दोनों को स्वस्थ रखते हैं। भौतिक सुख-सुविधाओं की दौड़ से दूर रहकर वे मानसिक संतुलन बनाए रखते हैं। आज के शहरी जीवन में बढ़ता तनाव, अवसाद और अकेलापन इस बात का प्रमाण है कि समाज को फिर से सादगी और संतुलन की ओर लौटने की जरूरत है, जैसा कि आदिवासी समाज सदियों से करता आ रहा है।
आधुनिक समाज के लिए सीख और अपनाने की जरूरत
विशेषज्ञों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का मानना है कि अगर आधुनिक समाज आदिवासी जीवनशैली के मूल तत्वों को अपनाए, तो कई सामाजिक और पर्यावरणीय समस्याओं का समाधान संभव है। जल संरक्षण, वनों की रक्षा, जैविक खेती और सामुदायिक सहयोग जैसे सिद्धांत आज की चुनौतियों का व्यावहारिक समाधान प्रस्तुत करते हैं। जरूरत इस बात की है कि नीति-निर्माता, शिक्षण संस्थान और समाज के जागरूक वर्ग इस जीवनदृष्टि को केवल सराहें ही नहीं, बल्कि अपने व्यवहार में भी शामिल करें, ताकि आने वाली पीढ़ियों को एक संतुलित और स्वस्थ संसार मिल सके।
झारखंड के कई जिलों में पिछुआ हवाओं के कारण ठंड में तेज बढ़ोतरी हुई है, जिससे तापमान में गिरावट दर्ज की गई है। मौसम विज्ञान केंद्र रांची के अनुसार, पिछुआ हवाएं उत्तर से उत्तर-पश्चिम दिशा से चल रही हैं, जिनके कारण न्यूनतम तापमान में लगभग चार डिग्री सेल्सियस तक की गिरावट आई है। राजधानी रांची सहित आसपास के क्षेत्रों में सुबह का तापमान करीब 10 डिग्री सेल्सियस के आसपास है, जिससे सुबह के समय काफी ठंडक बढ़ गई है। इस वर्ष सर्दी ने अपनी दस्तक समय से पहले दे दी है, क्योंकि मौसम विभाग ने पहले ही नवंबर के अंत से ठंड बढ़ने की चेतावनी दी थी। रातों में तापमान करीब 9 डिग्री तक गिर जाता है, जिससे पूरे क्षेत्र में ठंड का असर महसूस किया जा रहा है। राज्य के अधिकांश जिलों में मंगलवार को मौसम साफ और शुष्क रहा और मध्यम तेजी से हवा चली, जिससे ठंडी हवा का अनुभव हुआ। पिछले 24 घंटों में गोड्डा जिले में अधिकतम तापमान 28.2 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया, जबकि गुमला में न्यूनतम तापमान 8.8 डिग्री सेल्सियस रिकॉर्ड हुआ। रांची में अधिकतम तापमान 24.6 और न्यूनतम 11.1 डिग्री सेल्सियस रहा। कृषि विज्ञान केंद्र ने किसानों को सलाह दी है कि इस ठंड में फसलों की सुरक्षा के लिए सिंचाई का विशेष ख्याल रखा जाए ताकि वे प्रभावित न हों। मौसम विभाग ने सूचना दी है कि बंगाल की खाड़ी में दबाव का क्षेत्र बन रहा है, जिससे चक्रवात बनने की संभावना है। यह चक्रवात झारखंड सहित आसपास के क्षेत्रों के मौसम पर असर डाल सकता है। इस कारण अगले दो दिनों में तापमान में और गिरावट आने की संभावना है और बारिश या तेज हवाओं के चलते खेल आयोजन प्रभावित हो सकता है।राजधानी रांची सहित अन्य जिलों में पछुआ हवाओं के कारण कनकनी बढ़ गई है, जिससे सुबह और शाम की ठंड अधिक महसूस होती है।
जमशेदपुर: बिष्टुपुर स्थित गोपाल मैदान में बुधवार को रंगारंग सांस्कृतिक प्रस्तुति के साथ संवाद-ए ट्राइबल कॉन्क्लेव का समापन हुआ. इस पांच दिवसीय आयोजन के अंतिम दिन शाम को नागपुरी, संताली और जनजातीय लोकगीतों की गूंज के साथ पूरा मैदान झूम उठा. देश के विभिन्न राज्यों से आये कलाकारों ने अपने लोक संगीत और नृत्य से जनजातीय संस्कृति की विविधता का परिचय कराया. नागपुरी गायक अर्जुन लकड़ा और गायिका गरिमा एक्का ने संवाद अखड़ा मंच को संभाला. जैसे ही अर्जुन लकड़ा संवाद अखड़ा मंच पर पहुंचे, युवाओं में उत्साह की लहर दौड़ गयी. दर्शकों ने उनकी पसंदीदा गीतों की फरमाइश शुरू कर दी. लकड़ा ने अपने ट्रेडिंग गीतों की प्रस्तुति देकर माहौल को जोश से भर दिया. उनका गायकी का अंदाज और स्टेज कवरिंग शैली दर्शकों को थिरकने पर मजबूर कर रही थी. इसके बाद संताली गायिका कल्पना हांसदा ने अपनी मधुर आवाज में पारंपरिक व मॉडर्न गीत प्रस्तुत कर श्रोताओं का दिल जीत लिया. उनके गीतों की धुन पर युवाओं ने मैदान में समूह बनाकर नृत्य किया. रंग-बिरंगे पारंपरिक परिधानों में सजे युवाओं ने एक-दूसरे का हाथ थाम लोकनृत्य की लय पर झूमकर ट्राइबल संस्कृति की जीवंत छटा बिखेर दी. जनजातीय संगीत पर मंत्रमुग्ध हुए दर्शक कार्यक्रम में सैकड़ों की संख्या में स्थानीय लोग और युवा उपस्थित थे. हर गीत, हर प्रस्तुति पर तालियों की गड़गड़ाहट गूंजती रही. युवाओं ने अपने मोबाइल से वीडियो बनाकर इस सांस्कृतिक माहौल को कैद किया. सिर्फ झारखंड ही नहीं, बल्कि मेघालय, सिक्किम, नागालैंड, ओडिशा और छत्तीसगढ़ से आये कलाकारों ने भी अपनी पारंपरिक कला का प्रदर्शन कर खूब वाहवाही बटोरी. संवाद अखड़ा के मंच पर इन कलाकारों ने लोकनृत्य, पुनर्जीवित रिवाजों और जनजातीय संगीत के सुरों से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया. कार्यक्रम समापन की यह शाम सांस्कृतिक विविधता का उत्सव बना. लौहनगरी जमशेदपुर की धरती पर कलाकारों ने एकता और कला के नये रंग भी बिखेरा. स्टॉलों से एक करोड़ से अधिकार का हुआ कारोबार संवाद-ए ट्राइबल कॉन्क्लेव में जनजातीय व्यंजनों के स्टॉल समेत कला और हस्तशिल्प व पारंपरिक उपचार के स्टॉल्स के कई स्टॉल भी लगाये थे. जहां शहर समेत कोल्हान के विभिन्न जगहों से आये लोगों ने जमकर खरीदारी भी की. टीएसएफ के रिपोर्ट के मुताबिक इसबार संवाद-ए ट्राइबल कॉन्क्लेव में एक करोड़ से अधिक का कारोबार हुआ है. इससे यह बात साबित होती है कि जनजातीय समाज की वस्तुएं अब ब्रांड बन चुकी हैं. जिसे आदिवासी ही नहीं अन्य समाज व समुदाय के लोग भी खूब पसंद कर रहे हैं. संवाद फेलोशिप के लिए नौ फेलो का किया चयन टाटा स्टील फाउंडेशन ने संवाद फेलोशिप 2025 के लिए 9 फेलो के चयन की भी घोषणा की. इनका चयन 572 आवेदनों में से किया गया, जो 25 राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों की 122 जनजातियों का प्रतिनिधित्व कर रहे थे. जिनमें विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूहों से 10 आवेदक शामिल थे. फाउंडेशन ने पिछली कई फेलोशिप परियोजनाओं के पूरा होने का भी जश्न मनाया.
जमशेदपुर: राज्यभर के झारखंड आंदोलनकारी सामाजिक सुरक्षा, सम्मान और अधिकारों के मुद्दे पर एकजुट हो रहे हैं. इसी मुद्दे को लेकर ‘झारखंड आंदोलनकारी सेनानी समन्वय आह्वान’ ने 22 नवंबर को बाबा तिलका माझी क्लब, फुलडुंगरी, घाटशिला में एक बैठक बुलाया गया है. आयोजन समिति के प्रो. श्याम मुर्मू, संतोष सोरेन, आदित्य प्रधान, सुराई बास्के व अजीत तिर्की ने संयुक्त रूप से बताया कि वर्तमान सामाजिक सुरक्षा नीति सीमित होने के कारण हजारों आंदोलनकारी विशेषकर वे जो जेल नहीं गये थे, पर आंदोलन में उनका सक्रिय भूमिका रहा है. लेकिन वे आज भी पेंशन, स्वास्थ्य सुरक्षा और सम्मानजनक जीवन से वंचित है. इस स्थिति में अब एक मजबूत संयुक्त मंच की आवश्यकता महसूस की जा रही है. ताकि आंदोलन मजबूती के साथ अपनी मांगों को सरकार के सामने रख सके. उन्होंने सभी आंदोलनकारियों से अपील किया है कि वे उक्त बैठक में आवश्यक रूप से भाग ले. ये हैं प्रमुख मांगें -सभी आंदोलनकारियों को समान सामाजिक सुरक्षा एवं प्रशस्ति पत्र दिया जाये -पेंशन में उचित वृद्धि तथा नियमित भुगतान किया जाये -आंदोलनकारियों को स्वास्थ्य बीमा की सुविधा प्रदान की जाये -आंदोलनकारियों के आश्रितों को सरकारी नौकरी में प्राथमिकता दिया जाये -झारखंड आंदोलनकारी संग्रहालय सह स्मारक का निर्माण कराया जाये -झारखंड आंदोलनकारी आयोग का पुनर्गठन किया जाये
जमशेदपुर: राज्य सरकार के दिशा-निर्देशानुसार जिला अंतर्गत 11 पंचायत तथा जेएनएसी, जुगसलाई नगरपालिका एवं मानगो नगर निगम क्षेत्र में 'सेवा का अधिकार सप्ताह' के तहत आज शिविर का आयोजन किया गया । शिविरों में बड़ी संख्या में जिलेवासियों की भागीदारी रही। माननीय विधायकगण श्री समीर मोहंती, श्री मंगल कालिंदी, श्री संजीव सरदार ने भी शिविर में शामिल होकर विभिन्न योजनाओं के लाभुकों के बीच परिसंपत्ति का वितरण किया तथा नागरिकों से अपील किया कि अधिकाधिक संख्या में पंचायत स्तरीय शिविर में शामिल होकर सरकार की कल्याणकारी योजनाओं का लाभ उठायें। प्रखंडों के वरीय प्रभारी व विभागीय पदाधिकारी कैंप में हों शामिल: उपायुक्त पहले दिन के शिविर समापन उपरांत उपायुक्त श्री कर्ण सत्यार्थी ने सभी प्रखंडों के वरीय पदाधिकारी तथा बीडीओ-सीओ के साथ वर्चुअल बैठक कर शिविर की समीक्षा की । उन्होने स्पष्ट निर्देश दिया राज्य सरकार की भावना के अनुरूप राईट टू सर्विस अंतर्गत चिन्हित सभी सेवाओं से संबंधित प्राप्त आवेदनों का समयबद्ध निष्पादन सुनिश्चित करें। प्रत्येक पात्र नागरिक को उसका वांछित लाभ मिले । उन्होंने जिला स्तरीय पदाधिकारियों को निर्देश दिया कि प्रतिदिन किसी एक कैम्प में शामिल जरूर हों। ग्रामीण क्षेत्र से 2037, शहरी नागरिकों से 202 आवेदन प्राप्त हुए पंचायत एवं नगर निकायों में लगाए गए शिविर के माध्यम से जाति प्रमाण पत्र, स्थानीय निवासी प्रमाण पत्र, आय प्रमाण पत्र, जन्म प्रमाण पत्र, मृत्यु प्रमाण पत्र, नया राशन कार्ड, दाखिल–खारिज मामलों का निष्पादन, भूमि की मापी (Measurement of Land), भूमि धारण प्रमाण पत्र, झारखंड राज्य सेवा देने की गारंटी अधिनियम 2011 से जुड़ी अन्य सेवाएं, दिव्यांग पेंशन, वृद्धा पेंशन समेत सरकार की अन्य कल्याणकारी योजनाओं से जुड़े कुल 2239 आवेदन मिले जिसमें सभी 11 प्रखंडों से 2037 और नगर निकाय से 202 आवेदन शामिल हैं। आज के शिविर में दिव्यांग पेंशन के 1, भूमि की मापी के 2, मृत्यु प्रमाण पत्र के 2, भूमि धारण प्रमाण पत्र 3, दाखिल खारिज वादों का निष्पादन 8, विधवा पेंशन 10, जन्म प्रमाण पत्र 11, आय प्रमाण पत्र 53, स्थानीय निवासी प्रमाण पत्र 53, नया राशन कार्ड के 62, जाति प्रमाण पत्र के 78, झारखंड राज्य सेवा देने की गारंटी अधिनियम 2011 से जुड़ी अन्य सेवाएं के 124 आवेदन, वृद्धा पेंशन के 167 तथा लोक कल्याणकारी योजनाओं के 1665 योजनाएं शामिल है।
जमशेदपुर: टाटा स्टील डाउनस्ट्रीम प्रोडक्ट्स लिमिटेड (TSDPL), कलिंगानगर को वर्ष 2024-25 के लिए प्रतिष्ठित कलिंगा सेफ्टी एक्सीलेंस अवॉर्ड- प्लेटिनम कैटेगरी से सम्मानित किया गया है। यह सम्मान ओडिशा के इंस्टिट्यूट ऑफ क्वालिटी एंड एनवायरनमेंट मैनेजमेंट सर्विसेज (IQEMS) द्वारा, डायरेक्टरेट ऑफ़ फैक्ट्रीज़ एंड बॉयलर्स, सरकार ओडिशा के तत्वावधान में प्रदान किया गया। यह पुरस्कार कार्यस्थल सुरक्षा के प्रति उत्कृष्ट प्रतिबद्धता को मान्यता प्रदान करता है और एक सख्त त्रि-स्तरीय मूल्यांकन प्रक्रिया के बाद प्रदान किया गया। इस प्रक्रिया में विस्तृत आवेदन, ऑनलाइन प्रस्तुति और विशेषज्ञ जूरी द्वारा ऑन-साइट मूल्यांकन शामिल था। इस साल के संस्करण में भारत भर की 100 से अधिक कंपनियों ने भाग लिया। यह सम्मान 19 और 20 नवंबर को भुवनेश्वर में आयोजित समारोह में ओडिशा विधान सभा की माननीय अध्यक्ष, श्रीमती सुरमा पाढ़ि एवं जाजपुर के संसद सदस्य डॉ. आर.एन. बेहरा द्वारा प्रदान किया गया। राजेश चौधरी, चीफ, टीएसडीपीएल कलिंगानगर प्लांट ने यह पुरस्कार अगम कुमार, चीफ-सेफ्टी, टिनप्लेट और मेटालिक्स डिवीजन की उपस्थिति में प्राप्त किया। अवॉर्ड प्राप्त करते हुए राजेश चौधरी ने कहा कि यह सम्मान हमारी सुरक्षा उत्कृष्टता के प्रति अटूट प्रतिबद्धता का प्रमाण है। हमने प्लांट में सुरक्षा संस्कृति को मजबूत करने के लिए डिजिटलाइजेशन, ऑटोमेशन, कैमरों के माध्यम से उन्नत निगरानी, सेफ्टी फेंसिंग, प्रिवेंटिव मेंटेनेंस प्रैक्टिसेज और व्यवहार परिवर्तन आधारित कार्यक्रम जैसे कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं।
Santhali Cinema : संताली सिनेमा उद्योग से जुड़े कलाकार किसी भी प्रकार की बड़ी सरकारी सहायता के बिना वर्षों से अपनी मातृभाषा में निरंतर फिल्में बना रहे हैं। यह काम केवल व्यवसाय के लिए नहीं, बल्कि अपनी भाषा, संस्कृति और पहचान को जीवित रखने के लिए किया जा रहा है। सीमित संसाधनों, कम बजट और कई तकनीकी दिक्कतों के बावजूद कलाकार, निर्देशक, लेखक और संगीतकार पूरे समर्पण के साथ काम कर रहे हैं। गांवों, कस्बों और दूर-दराज के क्षेत्रों में शूटिंग करना, प्राकृतिक लोकेशन का उपयोग करना और सीमित साधनों में बेहतर परिणाम लाना उनकी सबसे बड़ी ताकत बन चुकी है। यह उद्योग संघर्षों से भरा जरूर है, लेकिन कलाकारों का जज्बा हर मुश्किल से बड़ा दिखाई देता है। पहचान की उम्मीद और बॉलीवुड जैसा सपना संताली फिल्म उद्योग से जुड़े लगभग हर अभिनेता, अभिनेत्री और तकनीशियन के मन में यह विश्वास गहराई से बैठा है कि आज नहीं तो कल, उनकी फिल्मों को भी बॉलीवुड की तरह देशभर में पहचान जरूर मिलेगी। यह सपना सिर्फ चमक-दमक का नहीं, बल्कि अपनी भाषा को सम्मान दिलाने का है। कलाकार मानते हैं कि जिस तरह मराठी, भोजपुरी, बंगाली और दक्षिण भारतीय भाषाओं की फिल्मों ने अपनी जगह बनाई है, उसी तरह संताली सिनेमा भी धीरे-धीरे राष्ट्रीय फलक पर उभरेगा। कई युवा कलाकार इस सपने को लेकर पूरी ईमानदारी से काम कर रहे हैं, अभिनय की नई तकनीकें सीख रहे हैं और अपने स्तर पर गुणवत्ता सुधारने का लगातार प्रयास कर रहे हैं। यही सकारात्मक सोच संताली सिनेमा की सबसे बड़ी पूंजी बन चुकी है। सिनेमा घरों की कमी, सोशल मीडिया बना सबसे बड़ा सहारा वर्तमान समय में संताली फिल्मों को दिखाने वाले सिनेमा घरों की संख्या बेहद कम है। कई जिलों में तो एक भी ऐसा थिएटर नहीं है, जहां नियमित रूप से संताली फिल्में प्रदर्शित हो सकें। इस कमी ने जरूर फिल्म उद्योग को चुनौती दी है, लेकिन कलाकारों और निर्माताओं ने इसे अपनी कमजोरी नहीं बनने दिया। यूट्यूब, फेसबुक, इंस्टाग्राम और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ने संताली फिल्मों और म्यूजिक एलबमों के लिए नया बाजार खोल दिया है। अब फिल्में और गाने सीधे दर्शकों के मोबाइल तक पहुंच रहे हैं। डिजिटल प्लेटफॉर्म की वजह से संताली फिल्मों का बिजनेस पूरी तरह से ऑनलाइन आधारित हो गया है और विज्ञापन, व्यूज व सब्सक्रिप्शन के जरिए कमाई का नया रास्ता तैयार हुआ है। मजबूत हौसले, एकजुटता और उज्ज्वल भविष्य की उम्मीद संताली फिल्म उद्योग से जुड़े कलाकारों का हौसला आज भी उतना ही मजबूत है, जितना शुरुआती दौर में था। चुनौतियों के बावजूद वे लगातार नई कहानियां लिख रहे हैं, नए विषयों पर फिल्में बना रहे हैं और अपनी कला को निखारने में लगे हुए हैं। यह उद्योग अब केवल मनोरंजन का जरिया नहीं, बल्कि एक आंदोलन का रूप ले चुका है, जो भाषा और संस्कृति को बचाने के लिए चल रहा है। कलाकारों के बीच आपसी सहयोग, टीम वर्क और एक-दूसरे को आगे बढ़ाने की भावना भी काफी मजबूत हुई है। आने वाले समय में यदि सरकारी और निजी स्तर पर थोड़ा और सहयोग मिला, तो संताली सिनेमा निश्चित रूप से एक नई ऊंचाई को छुएगा। आज जिस जज्बे के साथ यह उद्योग आगे बढ़ रहा है, वह साफ संकेत देता है कि संताली सिनेमा का भविष्य उज्ज्वल है और यह अपनी अलग पहचान जरूर बनाएगा।
Adivasi food: झारखंड के रांची, खूंटी, गुमला, सिमडेगा और पश्चिमी सिंहभूम जैसे जिलों में पाई जाने वाली यह परंपरा संथाल, हो, ओरांव और मुंडा जैसे आदिवासी समुदायों की सदियों पुरानी जीवनशैली का अहम हिस्सा रही है। जंगलों से गहरा रिश्ता रखने वाले ये समुदाय प्राकृतिक संसाधनों को भोजन और औषधि के रूप में उपयोग करते आए हैं। सर्दियों के मौसम में यह पारंपरिक खाद्य पदार्थ पारिवारिक भोज का विशेष हिस्सा बन जाता है और इसे प्यार से “जंगल का तोहफा” कहा जाता है। यह सिर्फ भोजन ही नहीं, बल्कि प्रकृति के प्रति सम्मान और संतुलित जीवनशैली का प्रतीक भी है। ओडिशा में इसे भौगोलिक संकेत (GI Tag) मिल चुका है, जिससे इसकी विशिष्टता और पारंपरिक महत्व को आधिकारिक मान्यता मिलती है। सेहत का प्राकृतिक कवच: ठंड से लेकर इम्युनिटी तक सर्दियों में इसका सेवन शरीर को अंदर से गर्म रखता है और ठंड व सर्दी-जुकाम से बचाव में सहायक माना जाता है। यह भूख बढ़ाने में भी मदद करती है, जिससे शरीर को भरपूर पोषण मिलता है। स्थानीय लोग मानते हैं कि यह प्राकृतिक इम्युनिटी बूस्टर की तरह काम करती है और शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत बनाती है। इसके नियमित सेवन से हड्डियाँ और मांसपेशियाँ मजबूत होती हैं, जिससे शारीरिक कमजोरी दूर होती है। ग्रामीण क्षेत्रों में इसे पारंपरिक घरेलू औषधि के रूप में भी अपनाया जाता है, खासकर बदलते मौसम में होने वाली बीमारियों से बचाव के लिए। रोगों से लड़ने में सहायक और बढ़ती लोकप्रियता आदिवासी समाज में यह धारणा प्रचलित है कि यह प्राकृतिक खाद्य पदार्थ कई तरह की बीमारियों में राहत पहुँचा सकता है। कोरोना, मलेरिया, पीलिया, बुखार, एनीमिया, उच्च रक्तचाप, मधुमेह, हृदय रोग और यहाँ तक कि कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों से लड़ने में इसे सहायक माना जाता है। परंपरागत विश्वासों के अनुसार, चींटियों के काटने से होने वाले बुखार में भी यह लाभकारी हो सकता है। इसके अलावा, वजन बढ़ाने, पाचन तंत्र को मजबूत करने और शरीर को डिटॉक्स करने में इसकी भूमिका बताई जाती है। आजकल शहरी क्षेत्रों में भी लोग इसे स्वास्थ्यवर्धक सुपरफूड के रूप में अपनाने लगे हैं, जिससे यह ग्रामीण और आदिवासी सीमाओं से बाहर निकलकर व्यापक पहचान बना रहा है।
जमशेदपुर: बिष्टुपुर स्थित गोपाल मैदान में बुधवार को रंगारंग सांस्कृतिक प्रस्तुति के साथ संवाद-ए ट्राइबल कॉन्क्लेव का समापन हुआ. इस पांच दिवसीय आयोजन के अंतिम दिन शाम को नागपुरी, संताली और जनजातीय लोकगीतों की गूंज के साथ पूरा मैदान झूम उठा. देश के विभिन्न राज्यों से आये कलाकारों ने अपने लोक संगीत और नृत्य से जनजातीय संस्कृति की विविधता का परिचय कराया. नागपुरी गायक अर्जुन लकड़ा और गायिका गरिमा एक्का ने संवाद अखड़ा मंच को संभाला. जैसे ही अर्जुन लकड़ा संवाद अखड़ा मंच पर पहुंचे, युवाओं में उत्साह की लहर दौड़ गयी. दर्शकों ने उनकी पसंदीदा गीतों की फरमाइश शुरू कर दी. लकड़ा ने अपने ट्रेडिंग गीतों की प्रस्तुति देकर माहौल को जोश से भर दिया. उनका गायकी का अंदाज और स्टेज कवरिंग शैली दर्शकों को थिरकने पर मजबूर कर रही थी. इसके बाद संताली गायिका कल्पना हांसदा ने अपनी मधुर आवाज में पारंपरिक व मॉडर्न गीत प्रस्तुत कर श्रोताओं का दिल जीत लिया. उनके गीतों की धुन पर युवाओं ने मैदान में समूह बनाकर नृत्य किया. रंग-बिरंगे पारंपरिक परिधानों में सजे युवाओं ने एक-दूसरे का हाथ थाम लोकनृत्य की लय पर झूमकर ट्राइबल संस्कृति की जीवंत छटा बिखेर दी. जनजातीय संगीत पर मंत्रमुग्ध हुए दर्शक कार्यक्रम में सैकड़ों की संख्या में स्थानीय लोग और युवा उपस्थित थे. हर गीत, हर प्रस्तुति पर तालियों की गड़गड़ाहट गूंजती रही. युवाओं ने अपने मोबाइल से वीडियो बनाकर इस सांस्कृतिक माहौल को कैद किया. सिर्फ झारखंड ही नहीं, बल्कि मेघालय, सिक्किम, नागालैंड, ओडिशा और छत्तीसगढ़ से आये कलाकारों ने भी अपनी पारंपरिक कला का प्रदर्शन कर खूब वाहवाही बटोरी. संवाद अखड़ा के मंच पर इन कलाकारों ने लोकनृत्य, पुनर्जीवित रिवाजों और जनजातीय संगीत के सुरों से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया. कार्यक्रम समापन की यह शाम सांस्कृतिक विविधता का उत्सव बना. लौहनगरी जमशेदपुर की धरती पर कलाकारों ने एकता और कला के नये रंग भी बिखेरा. स्टॉलों से एक करोड़ से अधिकार का हुआ कारोबार संवाद-ए ट्राइबल कॉन्क्लेव में जनजातीय व्यंजनों के स्टॉल समेत कला और हस्तशिल्प व पारंपरिक उपचार के स्टॉल्स के कई स्टॉल भी लगाये थे. जहां शहर समेत कोल्हान के विभिन्न जगहों से आये लोगों ने जमकर खरीदारी भी की. टीएसएफ के रिपोर्ट के मुताबिक इसबार संवाद-ए ट्राइबल कॉन्क्लेव में एक करोड़ से अधिक का कारोबार हुआ है. इससे यह बात साबित होती है कि जनजातीय समाज की वस्तुएं अब ब्रांड बन चुकी हैं. जिसे आदिवासी ही नहीं अन्य समाज व समुदाय के लोग भी खूब पसंद कर रहे हैं. संवाद फेलोशिप के लिए नौ फेलो का किया चयन टाटा स्टील फाउंडेशन ने संवाद फेलोशिप 2025 के लिए 9 फेलो के चयन की भी घोषणा की. इनका चयन 572 आवेदनों में से किया गया, जो 25 राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों की 122 जनजातियों का प्रतिनिधित्व कर रहे थे. जिनमें विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूहों से 10 आवेदक शामिल थे. फाउंडेशन ने पिछली कई फेलोशिप परियोजनाओं के पूरा होने का भी जश्न मनाया.