The River: मनुष्य की सभ्यता का इतिहास नदियों के किनारे ही पनपा और विकसित हुआ है। प्राचीन काल से लेकर आधुनिक समय तक नदियाँ केवल जल का स्रोत नहीं रहीं, बल्कि सामाजिक संगठन, सांस्कृतिक चेतना और आर्थिक प्रगति का आधार भी बनीं। मानव बस्तियाँ, कृषि, व्यापार और धार्मिक आस्थाएँ—इन सबका विकास नदियों के बिना संभव नहीं होता।
सामाजिक जीवन की संरचना में नदियों का योगदान
नदियों ने मानव समाज को संगठित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। नदी के किनारे बसने वाले समुदायों में आपसी सहयोग, श्रम-विभाजन और सामूहिकता की भावना विकसित हुई। पानी की उपलब्धता के कारण स्थायी बस्तियाँ बनीं, जिससे परिवार, गांव और शहरों का विस्तार हुआ। नदियाँ सामाजिक मेल-जोल का केंद्र बनीं, जहां लोग एक-दूसरे से मिलते-जुलते और सामूहिक गतिविधियों में भाग लेते। घाटों, तटों और संगम स्थलों को समाजिक जीवन के प्रमुख स्थल के रूप में विकसित किया गया।
सांस्कृतिक परंपराओं और धार्मिक आस्थाओं की जननी
भारत समेत अनेक देशों में नदियों को देवी या माता के रूप में पूजा गया है। गंगा, यमुना, नर्मदा, सरस्वती जैसी नदियाँ केवल जलधारा नहीं, बल्कि आस्था और विश्वास की प्रतीक हैं। नदी किनारे मेले, त्योहार और धार्मिक अनुष्ठान आज भी समाज की सांस्कृतिक पहचान का हिस्सा हैं। नदियों से जुड़े लोकगीत, कथाएं, पुराण और पौराणिक कथाएँ पीढ़ी-दर-पीढ़ी समाज को नैतिक और सांस्कृतिक मूल्य सिखाती रही हैं। इस प्रकार नदियाँ संस्कृति की संवाहक और रक्षक बनी रहीं।
आर्थिक विकास की आधारशिला
नदियाँ मानव जीवन की आर्थिक प्रगति का प्रमुख आधार रही हैं। उपजाऊ जलोढ़ मिट्टी ने कृषि को बढ़ावा दिया, जिससे अन्न उत्पादन संभव हुआ और समाज में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित हुई। नदियों ने सिंचाई की व्यवस्था को आसान बनाया और खेती को स्थायित्व प्रदान किया। इसके अलावा, प्राचीन काल में नदियाँ ही व्यापार का मुख्य मार्ग थीं। नावों और जहाजों के माध्यम से वस्तुओं का आदान-प्रदान होता था। आज भी अनेक उद्योग, जल-विद्युत परियोजनाएँ और पर्यटन गतिविधियाँ नदियों पर निर्भर हैं, जिससे लाखों लोगों को रोजगार मिलता है।
पर्यावरण संतुलन और जैव विविधता का संरक्षण
नदियाँ केवल मानव समाज के लिए नहीं, बल्कि सम्पूर्ण पर्यावरण तंत्र के लिए जीवनदायिनी हैं। वे भू-जल स्तर को बनाए रखने, नमी बनाए रखने और वर्षा चक्र को संतुलित करने में अहम भूमिका निभाती हैं। नदियों के आसपास विकसित होने वाले जंगल, आर्द्रभूमि और घास के मैदान जैव विविधता के प्रमुख केंद्र होते हैं। जलचरों से लेकर पक्षियों और वन्य जीवों तक, अनेक प्रजातियों का जीवन नदियों से जुड़ा है। इस प्रकार नदियाँ पृथ्वी के पारिस्थितिक संतुलन की रीढ़ हैं।
आधुनिक युग में नदियों की चुनौतियाँ और संरक्षण की आवश्यकता
आज तेजी से हो रहे औद्योगीकरण, शहरीकरण और जनसंख्या वृद्धि के कारण नदियाँ गंभीर संकट का सामना कर रही हैं। औद्योगिक अपशिष्ट, घरेलू कचरा और रासायनिक प्रदूषण ने कई नदियों को दूषित कर दिया है। जलवायु परिवर्तन के कारण नदियों का जलस्तर अनियमित होता जा रहा है। ऐसे समय में यह आवश्यक हो गया है कि समाज, सरकार और आम नागरिक मिलकर नदी संरक्षण के लिए कदम उठाएँ। वर्षा जल संचयन, गंदे पानी के उपचार, प्लास्टिक मुक्त अभियान और जन-जागरूकता जैसे प्रयासों से ही हम नदियों को आने वाली पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रख सकते हैं।
झारखंड के कई जिलों में पिछुआ हवाओं के कारण ठंड में तेज बढ़ोतरी हुई है, जिससे तापमान में गिरावट दर्ज की गई है। मौसम विज्ञान केंद्र रांची के अनुसार, पिछुआ हवाएं उत्तर से उत्तर-पश्चिम दिशा से चल रही हैं, जिनके कारण न्यूनतम तापमान में लगभग चार डिग्री सेल्सियस तक की गिरावट आई है। राजधानी रांची सहित आसपास के क्षेत्रों में सुबह का तापमान करीब 10 डिग्री सेल्सियस के आसपास है, जिससे सुबह के समय काफी ठंडक बढ़ गई है। इस वर्ष सर्दी ने अपनी दस्तक समय से पहले दे दी है, क्योंकि मौसम विभाग ने पहले ही नवंबर के अंत से ठंड बढ़ने की चेतावनी दी थी। रातों में तापमान करीब 9 डिग्री तक गिर जाता है, जिससे पूरे क्षेत्र में ठंड का असर महसूस किया जा रहा है। राज्य के अधिकांश जिलों में मंगलवार को मौसम साफ और शुष्क रहा और मध्यम तेजी से हवा चली, जिससे ठंडी हवा का अनुभव हुआ। पिछले 24 घंटों में गोड्डा जिले में अधिकतम तापमान 28.2 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया, जबकि गुमला में न्यूनतम तापमान 8.8 डिग्री सेल्सियस रिकॉर्ड हुआ। रांची में अधिकतम तापमान 24.6 और न्यूनतम 11.1 डिग्री सेल्सियस रहा। कृषि विज्ञान केंद्र ने किसानों को सलाह दी है कि इस ठंड में फसलों की सुरक्षा के लिए सिंचाई का विशेष ख्याल रखा जाए ताकि वे प्रभावित न हों। मौसम विभाग ने सूचना दी है कि बंगाल की खाड़ी में दबाव का क्षेत्र बन रहा है, जिससे चक्रवात बनने की संभावना है। यह चक्रवात झारखंड सहित आसपास के क्षेत्रों के मौसम पर असर डाल सकता है। इस कारण अगले दो दिनों में तापमान में और गिरावट आने की संभावना है और बारिश या तेज हवाओं के चलते खेल आयोजन प्रभावित हो सकता है।राजधानी रांची सहित अन्य जिलों में पछुआ हवाओं के कारण कनकनी बढ़ गई है, जिससे सुबह और शाम की ठंड अधिक महसूस होती है।
जमशेदपुर: बिष्टुपुर स्थित गोपाल मैदान में बुधवार को रंगारंग सांस्कृतिक प्रस्तुति के साथ संवाद-ए ट्राइबल कॉन्क्लेव का समापन हुआ. इस पांच दिवसीय आयोजन के अंतिम दिन शाम को नागपुरी, संताली और जनजातीय लोकगीतों की गूंज के साथ पूरा मैदान झूम उठा. देश के विभिन्न राज्यों से आये कलाकारों ने अपने लोक संगीत और नृत्य से जनजातीय संस्कृति की विविधता का परिचय कराया. नागपुरी गायक अर्जुन लकड़ा और गायिका गरिमा एक्का ने संवाद अखड़ा मंच को संभाला. जैसे ही अर्जुन लकड़ा संवाद अखड़ा मंच पर पहुंचे, युवाओं में उत्साह की लहर दौड़ गयी. दर्शकों ने उनकी पसंदीदा गीतों की फरमाइश शुरू कर दी. लकड़ा ने अपने ट्रेडिंग गीतों की प्रस्तुति देकर माहौल को जोश से भर दिया. उनका गायकी का अंदाज और स्टेज कवरिंग शैली दर्शकों को थिरकने पर मजबूर कर रही थी. इसके बाद संताली गायिका कल्पना हांसदा ने अपनी मधुर आवाज में पारंपरिक व मॉडर्न गीत प्रस्तुत कर श्रोताओं का दिल जीत लिया. उनके गीतों की धुन पर युवाओं ने मैदान में समूह बनाकर नृत्य किया. रंग-बिरंगे पारंपरिक परिधानों में सजे युवाओं ने एक-दूसरे का हाथ थाम लोकनृत्य की लय पर झूमकर ट्राइबल संस्कृति की जीवंत छटा बिखेर दी. जनजातीय संगीत पर मंत्रमुग्ध हुए दर्शक कार्यक्रम में सैकड़ों की संख्या में स्थानीय लोग और युवा उपस्थित थे. हर गीत, हर प्रस्तुति पर तालियों की गड़गड़ाहट गूंजती रही. युवाओं ने अपने मोबाइल से वीडियो बनाकर इस सांस्कृतिक माहौल को कैद किया. सिर्फ झारखंड ही नहीं, बल्कि मेघालय, सिक्किम, नागालैंड, ओडिशा और छत्तीसगढ़ से आये कलाकारों ने भी अपनी पारंपरिक कला का प्रदर्शन कर खूब वाहवाही बटोरी. संवाद अखड़ा के मंच पर इन कलाकारों ने लोकनृत्य, पुनर्जीवित रिवाजों और जनजातीय संगीत के सुरों से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया. कार्यक्रम समापन की यह शाम सांस्कृतिक विविधता का उत्सव बना. लौहनगरी जमशेदपुर की धरती पर कलाकारों ने एकता और कला के नये रंग भी बिखेरा. स्टॉलों से एक करोड़ से अधिकार का हुआ कारोबार संवाद-ए ट्राइबल कॉन्क्लेव में जनजातीय व्यंजनों के स्टॉल समेत कला और हस्तशिल्प व पारंपरिक उपचार के स्टॉल्स के कई स्टॉल भी लगाये थे. जहां शहर समेत कोल्हान के विभिन्न जगहों से आये लोगों ने जमकर खरीदारी भी की. टीएसएफ के रिपोर्ट के मुताबिक इसबार संवाद-ए ट्राइबल कॉन्क्लेव में एक करोड़ से अधिक का कारोबार हुआ है. इससे यह बात साबित होती है कि जनजातीय समाज की वस्तुएं अब ब्रांड बन चुकी हैं. जिसे आदिवासी ही नहीं अन्य समाज व समुदाय के लोग भी खूब पसंद कर रहे हैं. संवाद फेलोशिप के लिए नौ फेलो का किया चयन टाटा स्टील फाउंडेशन ने संवाद फेलोशिप 2025 के लिए 9 फेलो के चयन की भी घोषणा की. इनका चयन 572 आवेदनों में से किया गया, जो 25 राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों की 122 जनजातियों का प्रतिनिधित्व कर रहे थे. जिनमें विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूहों से 10 आवेदक शामिल थे. फाउंडेशन ने पिछली कई फेलोशिप परियोजनाओं के पूरा होने का भी जश्न मनाया.
जमशेदपुर: राज्यभर के झारखंड आंदोलनकारी सामाजिक सुरक्षा, सम्मान और अधिकारों के मुद्दे पर एकजुट हो रहे हैं. इसी मुद्दे को लेकर ‘झारखंड आंदोलनकारी सेनानी समन्वय आह्वान’ ने 22 नवंबर को बाबा तिलका माझी क्लब, फुलडुंगरी, घाटशिला में एक बैठक बुलाया गया है. आयोजन समिति के प्रो. श्याम मुर्मू, संतोष सोरेन, आदित्य प्रधान, सुराई बास्के व अजीत तिर्की ने संयुक्त रूप से बताया कि वर्तमान सामाजिक सुरक्षा नीति सीमित होने के कारण हजारों आंदोलनकारी विशेषकर वे जो जेल नहीं गये थे, पर आंदोलन में उनका सक्रिय भूमिका रहा है. लेकिन वे आज भी पेंशन, स्वास्थ्य सुरक्षा और सम्मानजनक जीवन से वंचित है. इस स्थिति में अब एक मजबूत संयुक्त मंच की आवश्यकता महसूस की जा रही है. ताकि आंदोलन मजबूती के साथ अपनी मांगों को सरकार के सामने रख सके. उन्होंने सभी आंदोलनकारियों से अपील किया है कि वे उक्त बैठक में आवश्यक रूप से भाग ले. ये हैं प्रमुख मांगें -सभी आंदोलनकारियों को समान सामाजिक सुरक्षा एवं प्रशस्ति पत्र दिया जाये -पेंशन में उचित वृद्धि तथा नियमित भुगतान किया जाये -आंदोलनकारियों को स्वास्थ्य बीमा की सुविधा प्रदान की जाये -आंदोलनकारियों के आश्रितों को सरकारी नौकरी में प्राथमिकता दिया जाये -झारखंड आंदोलनकारी संग्रहालय सह स्मारक का निर्माण कराया जाये -झारखंड आंदोलनकारी आयोग का पुनर्गठन किया जाये
जमशेदपुर: राज्य सरकार के दिशा-निर्देशानुसार जिला अंतर्गत 11 पंचायत तथा जेएनएसी, जुगसलाई नगरपालिका एवं मानगो नगर निगम क्षेत्र में 'सेवा का अधिकार सप्ताह' के तहत आज शिविर का आयोजन किया गया । शिविरों में बड़ी संख्या में जिलेवासियों की भागीदारी रही। माननीय विधायकगण श्री समीर मोहंती, श्री मंगल कालिंदी, श्री संजीव सरदार ने भी शिविर में शामिल होकर विभिन्न योजनाओं के लाभुकों के बीच परिसंपत्ति का वितरण किया तथा नागरिकों से अपील किया कि अधिकाधिक संख्या में पंचायत स्तरीय शिविर में शामिल होकर सरकार की कल्याणकारी योजनाओं का लाभ उठायें। प्रखंडों के वरीय प्रभारी व विभागीय पदाधिकारी कैंप में हों शामिल: उपायुक्त पहले दिन के शिविर समापन उपरांत उपायुक्त श्री कर्ण सत्यार्थी ने सभी प्रखंडों के वरीय पदाधिकारी तथा बीडीओ-सीओ के साथ वर्चुअल बैठक कर शिविर की समीक्षा की । उन्होने स्पष्ट निर्देश दिया राज्य सरकार की भावना के अनुरूप राईट टू सर्विस अंतर्गत चिन्हित सभी सेवाओं से संबंधित प्राप्त आवेदनों का समयबद्ध निष्पादन सुनिश्चित करें। प्रत्येक पात्र नागरिक को उसका वांछित लाभ मिले । उन्होंने जिला स्तरीय पदाधिकारियों को निर्देश दिया कि प्रतिदिन किसी एक कैम्प में शामिल जरूर हों। ग्रामीण क्षेत्र से 2037, शहरी नागरिकों से 202 आवेदन प्राप्त हुए पंचायत एवं नगर निकायों में लगाए गए शिविर के माध्यम से जाति प्रमाण पत्र, स्थानीय निवासी प्रमाण पत्र, आय प्रमाण पत्र, जन्म प्रमाण पत्र, मृत्यु प्रमाण पत्र, नया राशन कार्ड, दाखिल–खारिज मामलों का निष्पादन, भूमि की मापी (Measurement of Land), भूमि धारण प्रमाण पत्र, झारखंड राज्य सेवा देने की गारंटी अधिनियम 2011 से जुड़ी अन्य सेवाएं, दिव्यांग पेंशन, वृद्धा पेंशन समेत सरकार की अन्य कल्याणकारी योजनाओं से जुड़े कुल 2239 आवेदन मिले जिसमें सभी 11 प्रखंडों से 2037 और नगर निकाय से 202 आवेदन शामिल हैं। आज के शिविर में दिव्यांग पेंशन के 1, भूमि की मापी के 2, मृत्यु प्रमाण पत्र के 2, भूमि धारण प्रमाण पत्र 3, दाखिल खारिज वादों का निष्पादन 8, विधवा पेंशन 10, जन्म प्रमाण पत्र 11, आय प्रमाण पत्र 53, स्थानीय निवासी प्रमाण पत्र 53, नया राशन कार्ड के 62, जाति प्रमाण पत्र के 78, झारखंड राज्य सेवा देने की गारंटी अधिनियम 2011 से जुड़ी अन्य सेवाएं के 124 आवेदन, वृद्धा पेंशन के 167 तथा लोक कल्याणकारी योजनाओं के 1665 योजनाएं शामिल है।
जमशेदपुर: टाटा स्टील डाउनस्ट्रीम प्रोडक्ट्स लिमिटेड (TSDPL), कलिंगानगर को वर्ष 2024-25 के लिए प्रतिष्ठित कलिंगा सेफ्टी एक्सीलेंस अवॉर्ड- प्लेटिनम कैटेगरी से सम्मानित किया गया है। यह सम्मान ओडिशा के इंस्टिट्यूट ऑफ क्वालिटी एंड एनवायरनमेंट मैनेजमेंट सर्विसेज (IQEMS) द्वारा, डायरेक्टरेट ऑफ़ फैक्ट्रीज़ एंड बॉयलर्स, सरकार ओडिशा के तत्वावधान में प्रदान किया गया। यह पुरस्कार कार्यस्थल सुरक्षा के प्रति उत्कृष्ट प्रतिबद्धता को मान्यता प्रदान करता है और एक सख्त त्रि-स्तरीय मूल्यांकन प्रक्रिया के बाद प्रदान किया गया। इस प्रक्रिया में विस्तृत आवेदन, ऑनलाइन प्रस्तुति और विशेषज्ञ जूरी द्वारा ऑन-साइट मूल्यांकन शामिल था। इस साल के संस्करण में भारत भर की 100 से अधिक कंपनियों ने भाग लिया। यह सम्मान 19 और 20 नवंबर को भुवनेश्वर में आयोजित समारोह में ओडिशा विधान सभा की माननीय अध्यक्ष, श्रीमती सुरमा पाढ़ि एवं जाजपुर के संसद सदस्य डॉ. आर.एन. बेहरा द्वारा प्रदान किया गया। राजेश चौधरी, चीफ, टीएसडीपीएल कलिंगानगर प्लांट ने यह पुरस्कार अगम कुमार, चीफ-सेफ्टी, टिनप्लेट और मेटालिक्स डिवीजन की उपस्थिति में प्राप्त किया। अवॉर्ड प्राप्त करते हुए राजेश चौधरी ने कहा कि यह सम्मान हमारी सुरक्षा उत्कृष्टता के प्रति अटूट प्रतिबद्धता का प्रमाण है। हमने प्लांट में सुरक्षा संस्कृति को मजबूत करने के लिए डिजिटलाइजेशन, ऑटोमेशन, कैमरों के माध्यम से उन्नत निगरानी, सेफ्टी फेंसिंग, प्रिवेंटिव मेंटेनेंस प्रैक्टिसेज और व्यवहार परिवर्तन आधारित कार्यक्रम जैसे कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं।
The River: मनुष्य की सभ्यता का इतिहास नदियों के किनारे ही पनपा और विकसित हुआ है। प्राचीन काल से लेकर आधुनिक समय तक नदियाँ केवल जल का स्रोत नहीं रहीं, बल्कि सामाजिक संगठन, सांस्कृतिक चेतना और आर्थिक प्रगति का आधार भी बनीं। मानव बस्तियाँ, कृषि, व्यापार और धार्मिक आस्थाएँ—इन सबका विकास नदियों के बिना संभव नहीं होता। सामाजिक जीवन की संरचना में नदियों का योगदान नदियों ने मानव समाज को संगठित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। नदी के किनारे बसने वाले समुदायों में आपसी सहयोग, श्रम-विभाजन और सामूहिकता की भावना विकसित हुई। पानी की उपलब्धता के कारण स्थायी बस्तियाँ बनीं, जिससे परिवार, गांव और शहरों का विस्तार हुआ। नदियाँ सामाजिक मेल-जोल का केंद्र बनीं, जहां लोग एक-दूसरे से मिलते-जुलते और सामूहिक गतिविधियों में भाग लेते। घाटों, तटों और संगम स्थलों को समाजिक जीवन के प्रमुख स्थल के रूप में विकसित किया गया। सांस्कृतिक परंपराओं और धार्मिक आस्थाओं की जननी भारत समेत अनेक देशों में नदियों को देवी या माता के रूप में पूजा गया है। गंगा, यमुना, नर्मदा, सरस्वती जैसी नदियाँ केवल जलधारा नहीं, बल्कि आस्था और विश्वास की प्रतीक हैं। नदी किनारे मेले, त्योहार और धार्मिक अनुष्ठान आज भी समाज की सांस्कृतिक पहचान का हिस्सा हैं। नदियों से जुड़े लोकगीत, कथाएं, पुराण और पौराणिक कथाएँ पीढ़ी-दर-पीढ़ी समाज को नैतिक और सांस्कृतिक मूल्य सिखाती रही हैं। इस प्रकार नदियाँ संस्कृति की संवाहक और रक्षक बनी रहीं। आर्थिक विकास की आधारशिला नदियाँ मानव जीवन की आर्थिक प्रगति का प्रमुख आधार रही हैं। उपजाऊ जलोढ़ मिट्टी ने कृषि को बढ़ावा दिया, जिससे अन्न उत्पादन संभव हुआ और समाज में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित हुई। नदियों ने सिंचाई की व्यवस्था को आसान बनाया और खेती को स्थायित्व प्रदान किया। इसके अलावा, प्राचीन काल में नदियाँ ही व्यापार का मुख्य मार्ग थीं। नावों और जहाजों के माध्यम से वस्तुओं का आदान-प्रदान होता था। आज भी अनेक उद्योग, जल-विद्युत परियोजनाएँ और पर्यटन गतिविधियाँ नदियों पर निर्भर हैं, जिससे लाखों लोगों को रोजगार मिलता है। पर्यावरण संतुलन और जैव विविधता का संरक्षण नदियाँ केवल मानव समाज के लिए नहीं, बल्कि सम्पूर्ण पर्यावरण तंत्र के लिए जीवनदायिनी हैं। वे भू-जल स्तर को बनाए रखने, नमी बनाए रखने और वर्षा चक्र को संतुलित करने में अहम भूमिका निभाती हैं। नदियों के आसपास विकसित होने वाले जंगल, आर्द्रभूमि और घास के मैदान जैव विविधता के प्रमुख केंद्र होते हैं। जलचरों से लेकर पक्षियों और वन्य जीवों तक, अनेक प्रजातियों का जीवन नदियों से जुड़ा है। इस प्रकार नदियाँ पृथ्वी के पारिस्थितिक संतुलन की रीढ़ हैं। आधुनिक युग में नदियों की चुनौतियाँ और संरक्षण की आवश्यकता आज तेजी से हो रहे औद्योगीकरण, शहरीकरण और जनसंख्या वृद्धि के कारण नदियाँ गंभीर संकट का सामना कर रही हैं। औद्योगिक अपशिष्ट, घरेलू कचरा और रासायनिक प्रदूषण ने कई नदियों को दूषित कर दिया है। जलवायु परिवर्तन के कारण नदियों का जलस्तर अनियमित होता जा रहा है। ऐसे समय में यह आवश्यक हो गया है कि समाज, सरकार और आम नागरिक मिलकर नदी संरक्षण के लिए कदम उठाएँ। वर्षा जल संचयन, गंदे पानी के उपचार, प्लास्टिक मुक्त अभियान और जन-जागरूकता जैसे प्रयासों से ही हम नदियों को आने वाली पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रख सकते हैं।